आज की इस आधुनिक दुनिया में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जिसे हवाई जहाज की जानकारी ना हो, हवाई जहाज के अविष्कार को मनुष्यों का सबसे अनूठा अविष्कार माना जाता है। आजके इस पोस्ट में हम जानिंगे की एरोप्लेन का आविष्कार किसने किया और कब?
व्यक्ति जन्म के बाद से आकाश में उड़ने का सपना देखने लगता है क्योंकि पक्षियों को खुले आसमान में उड़ता देखकर व्यक्ति के मन में भी उड़ने की लालसा बढ़ जाती है, व्यक्ति के उसी लालसा ने वायुयान के आविष्कार को जन्म दिया है।
यदि हम नजर डालें विमान के इतिहास पर तो इसका इतिहास काफी पुराना है, हम महाभारत और रामायण काल से विमानों के बारे में जानते है। लेकिन आज के अपने इस लेख में हम बात करेंगे कि आधुनिक युग में एरोप्लेन का आविष्कार किसने किया और कब? या फिर एरोप्लेन को कब और कैसे बनाया गया। इसके साथ ही हम यह भी जानेंगे कि भारत में एरोप्लेन का क्या इतिहास रहा।
Contents
एरोप्लेन का आविष्कार किसने किया?
विश्व में सर्वप्रथम पहला हवाई जहाज का आविष्कार औरविल राईट और विल्बर राइटने 17 दिसंबर वर्ष 1930 में किया था, और दोनों भाइयों को इस अनूठे अविष्कार के लिए राइट ब्रदर्स का खिताब मिला था।
हवाई जहाज के अविष्कार ने मनुष्य के जीवन में कई तरह के बदलाव लाएं, क्योंकि इस अविष्कार के बाद ही रॉकेट साइंस का भी अविष्कार हुआ जिसके कारण आज हम सिर्फ हवा में ही नहीं उड़ रहे है बल्कि ग्रहों के बारे में भी जान रहे है।
हवाई जहाज ने मनुष्यो के सफर को बहुत ही आसान बनाया है, प्राचीन समय में हमें किसी एक देश से दूसरे देश जाने में या एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक जाने के लिए महीनों तक का समय लगता था, लेकिन एरोप्लेन के कारण अब यह दूरी महज कुछ घंटों तक की है।
एरोप्लेन के इस अनूठे अविष्कार ने हमें देश विदेश से अच्छी तरह जोड़ रखा है हम पढ़ने के लिए, बिजनेस के लिए, नौकरी के लिए या अन्य कामों के लिए बस कुछ ही पल में एक देश से दूसरे देश पहुंच जाते है। एरोप्लेन के जरिए हम 1 दिन में 15000 किलोमीटर से भी ज्यादा तक का सफर तय कर सकते है, इस वस्तु की खासियत है कि इसमें समय कम लगता है और इसके साथ ही हवाई जहाज में सफर करना बहुत ही आरामदायक होता है।
एरोप्लेन का इतिहास
हवाई जहाज को बनाने की शुरुआत आज से करीब 2 सदी पहले हुई थी, बहुत पहले व्यक्ति हमेशा इसी सोच में डूबा रहता था कि वह पक्षियों की तरह आसमान में कैसे उड़े, और तभी से इंसान इस खोज में लग गया हालांकि व्यक्ति खुद को हवा में उड़ाने के लिए कामयाब नहीं हो सका, लेकिन उसने ऐसी वस्तु की खोज कर ली जिसके जरिए वह हवा में उड़ सके।
तीसरी सदी के कुछ लोगों ने पक्षियों की तरह उड़ने का प्रयास किया, और उन लोगों ने अपनी बाहों में लगाने के लिए ओर्निथोप्टर पंख का अविष्कार किया, लेकिन उनका यह अविष्कार सतह तक के लिए तो ठीक था मगर जमीन से लंबी उड़ान भरने के लिए बहुत ही मुश्किल था, क्योंकि एक मशीन या व्यक्ति को हवा में उड़ने के लिए अधिक बल की आवश्यकता पड़ती है।
इस प्रयास के असफल होने पर लोगों ने नए तरीके ढूंढने शुरू कर दिए, वर्ष 1783 में एयरनॉटस से हाइड्रोजन और गर्म हवा से बने गुब्बारों का आविष्कार किया, लेकिन इसमें बहुत सी कमियां थी क्योंकि यह गुब्बारा उसी दिशा में उड़ता था जिस दिशा में हवा होती थी।
इसके बाद 19वीं शताब्दी में Sir George Cayley ने एक ऐसे यंत्र की कल्पना की जिसके अपने खुद के पंख हो खुद चलने की क्षमता हो और अपनी खुद की सतह हो, इसी प्रिंसिपल पर उन्होंने वर्ष 1799 में एरोप्लेन का आविष्कार किया, हालांकि इसमें भी कुछ कमियां थी लेकिन Cayley का यह सिद्धांत सभी को पसंद आया और इसी सिद्धांत को ध्यान मे रखकर आज का एरोप्लेन बनाया गया है
Cayley ने अपने इस सिद्धांत पर कड़ी मेहनत की और वर्ष 1849 में एक ऐसे प्लेन का अविष्कार किया जोकि 80 पाउंड के एक वस्तु का भार संभालने में सक्षम रहा। यह प्लेन दिखने में पैराशूट की तरह था, जब इस प्लेन को उड़ाया गया तो यह कुछ देर तक हवा में उड़ने के बाद जमीन पर आकर गिर गया, यह वही प्लेन था जिसमें 10 साल के एक लड़के ने पहली बार उड़ान भरी थी।
जीन-मैरी ले ब्रिस ने वर्ष 1857 मेंपहले पावर ग्लाइडर (भाप से चलने वालेविमान) का परीक्षण किया,जिसकी पहली उड़ान तो सफल रही लेकिन दूसरी उड़ान मे वह सतह से टकराकर टूट गया। इसके बाद Louis or Felix Dutemple ने मोनोप्लेन का आविष्कार किया जो की उड़ान के बाद सफल लैंडिंग कर सकता था लेकिन यह अकार में बहुत छोटा था।
इसके बाद वर्ष 1874 में दोनों भाई ने मिलकर 40 फीट का एक ऐसा मोनोप्लेन का निर्माण किया जिसमें एक व्यक्ति बैठकर उड़ान भर सकता था और इस प्लेन का इंजन 6 हॉर्स पावर का था।
वर्तमान समय में एरोप्लेन के आविष्कार का पूरा श्रेय औरविल राईट और विल्बर राइट को दिया जाता है, इन दोनों भाइयों को बचपन से ही विज्ञान क्षेत्र में बहुत ही ज्यादा दिलचस्पी थी, दोनों भाई साथ मिलकर उड़ने का खिलौना बनाया करते थे
एक बार इन्होंने कागज, रबर और बांस का हेलीकॉप्टर बनाकर अपने पापा को दिखाया, लेकिन उनका बनाया ये खिलौना ज्यादा दिन तक उड़ नहीं पाया। मगर दोनों भाइयों ने हार नहीं मानी उन्होंने मिलकर एक ऐसी मशीन से पतंग बनाई जो उड़ने में सफल हुई फिर दोनों भाइयों ने पूरे गांव में उसे खूब उड़ाया, बड़े होने के बाद भी दोनों भाइयों ने मिलकर ऐसे कई यंत्र का आविष्कार किया जो उड़ने में सफल रहे।
वर्ष 1886 में दोनों भाइयों ने ठान ली कि वे एक ऐसी मशीन का आविष्कार करेंगे जो काफी बड़ी और उड़ने में सफल हो, कई प्रयासों के बाद वर्ष 1899 में दोनों भाइयों ने एक ऐसे ग्लाइडर का परीक्षण किया जो हवा में सामान्य रूप से बैलेंस बना सकें और उनका परीक्षण सफल रहा, इसके बाद उन्होंने इसी ग्लाइडर पर रडार लगाया जिससे ग्लाइडर अलग-अलग दिशा में उड़ सके।
14 दिसंबर वर्ष 1903 में कैरोलिना शहर केकिटी हॉक नामक जगह पर अपने बनाए इस ग्लाइडर का परीक्षण किया, उनके बनाए इस ग्लाइडर ने 14 फीट की ऊंचाई तक की उड़ान भरी, इसके बाद दोनों भाइयों ने इस पर और मेहनत की और फिर से इस प्लेन को उड़ाया तब इस प्लेन में 120 फीट की ऊंचाई तक की उड़ान भरी और 1 मिनट तक हवा में उड़ी।
भारत में एरोप्लेन का इतिहास
भारत में वर्ष 1912 को इंपीरियल एयरवेज का संगठन हुआ और यहीं से अंतरराष्ट्रीय उड़ान सेवा शुरू की गई, भारत में सबसे पहले हवाई सेवा मुंबई और कोलकाता में शुरू की गई थी, इसके बाद वर्ष 1915 में टाटा कंपनी ने कराची और मद्रास के बीच हवाई सेवा शुरू की और फिर वर्ष 1920 में रॉयल हवाई सेवा कराची और मुंबई के बीच हुई थी। भारत में आम नागरिकों के लिए हवाई सेवा को वर्ष 1924 में शुरू किया गया था।
फादर ऑफ एरोप्लेन का खिताब किसे दिया गया है
Sir George Cayley को फादर ऑफ एरोप्लेन का खिताब दिया गया है क्योंकि इन्होंने ही सर्वप्रथम एरोप्लेन का डिजाइनिंग किया था और ऐसा सिद्धांत बताया था जिससे हवा में भारी वस्तु उड़ सके, और इनके बाद औरविल राईट और विल्बर राइट को एरोप्लेन का आविष्कारक माना जाता है।
एरोप्लेन से जुड़ी कुछ अन्य बातें
- विश्व भर में रोजाना 5 लाख से भी ज्यादा एरोप्लेन हवा में उड़ान भरते है।
- वर्तमान समय में हम बिना पाइलट के भी हवाई जहाज को उड़ा सकते है लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए पाइलट का होना अनिवार्य है।
- आज भी हवाई जहाज में सफर करने से कई लोगों को डर लगता है और इस डर को एविओफोबिया कहते है।
- विश्व के सबसे पहले एरोप्लेन का नाम एयरबस A380 था, इस प्लेन में 4 इंजन लगे हुए थे।
- विश्व में 5% लोग ही एरोप्लेन का इस्तेमाल करते है क्योंकि आम नागरिकों के लिए यह साधन थोड़ा सा महंगा पड़ता है।
FAQ
Sir George Cayley
17 दिसम्बर 1903
राइट बंधुओऔरविल राईट और विल्बर राइट
आज के इस लेख के जरिए हमने आपको बताया कि एरोप्लेन का आविष्कार किसने किया और कब? या फिर एरोप्लेन को कब और कैसे बनाया गया और इसके साथ ही इससे जुडी अन्य जानकारी भी प्रदान की है। हम आशा करते है कि आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। इसे अपने दोस्तों व सोशल मीडिया पर भी जरुर शेयर करे तथा इससे जुड़े प्रश्न आप हमसे कमेंट बॉक्स में पूछे।
Hope की आपको एरोप्लेन का आविष्कार किसने किया और कब? का यह पोस्ट पसंद आया होगा, और हेल्पफ़ुल लगा होगा।
अगर आपके पास इस पोस्ट से रिलेटेड कोई सवाल है तो नीचे कमेंट करे. और अगर पोस्ट पसंद आया हो तो सोशल मीडिया पर शेयर भी कर दे.