DBMS क्या है?
DBMS एक तरह का सॉफ्टवेयर होता है, जिसका काम डेटाबेस में उपयोगकर्ताओं के डाटा को स्टोर करना, मैनेज करना, और मैनिपुलेट करना होता है। DBMS का पूरा नाम डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम होता है। DBMS अपने यूजर्स को एक ऐसा इंटरफेस प्रोवाइड करता है जहां वे आसानी से अपने डाटा को create, update, store, manipulate, organise कर सकते हैं, इसके अंतर्गत बहुत से प्रोग्राम्स होते हैं जिसके जरिए डाटा का मैनिपुलेशन किया जाता है।
DBMS के जरिए किसी भी डाटा को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है, यह सबसे पहले किसी एप्लीकेशन के जरिए प्राप्त की गई रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट करता है और फिर उस डाटा को शो करने के लिए सिस्टम के ऑपरेटिंग सिस्टम को निर्देश देता है। उदाहरण के लिए आपने प्रोग्रामिंग में कभी oracle या MySQL जैसे डेटाबेस का नाम सुना होगा जिसका इस्तेमाल कई एप्लीकेशंस में किया जाता है।
उदाहरण के लिए ऐसे भी समझ सकते हैं जैसे मान लीजिए जब आप किसी सोशल मीडिया पर अपना अकाउंट बनाते हैं तो वहां पर अपनी सभी जानकारियां दर्ज करते हैं और आपके द्वारा दर्ज की गई जानकारियां और सोशल मीडिया अकाउंट के डेटाबेस में स्टोर होती है। अब अपने द्वारा भरी गई जानकारियों को देखने के लिए आप सोशल मीडिया अकाउंट के एप्लीकेशन या वेबसाइट का इस्तेमाल कर सकते हैं जो कि उस डाटाबेस से लिंक हो।
DBMS के प्रकार (Types of DBMS in Hindi)
डीबीएमएस के मुख्य रूप से चार प्रकार हैं लेकिन यहां पर हम आपको इसके 10 प्रकार बताएंगे।
1. Hierarchical Database
2. Network Database
3. Relational Database
4. Object-oriented Database
5. Centralized Database
6. Distributed Database
7. Cloud Database
8. Personal Database
9. Operational Database
10. Enterprise Database
Hierarchical Database:- इसके अंतर्गत आने वाला डाटा hierarchially स्टोर होता है जिस तरह से एक पेड़ की सभी शाखाएं उसी में होती है उसी तरह से इसके अंतर्गत सभी रिकॉर्ड टॉप डाउन या बॉटम से कनेक्ट होते हैं। इसके अंतर्गत डेटा पेरेंट्स और चिल्ड्रन के रिलेशनशिप की तरह होता है, जैसे पेरेंट्स के कई बच्चे हो सकते हैं लेकिन उस बच्चे की केवल एक ही पेरेंट्स है।
Network Database:- यह डाटाबेस नेटवर्क डाटाबेस मॉडल को फॉलो करता है, और इसे फ्लैक्सिबल अप्रोच के तहत डिजाइन किया गया है, यह आपके Hierarchical Database की तुलना में उसका उल्टा है। इसके अंतर्गत एंटिटीज को ग्राफ में ऑर्गेनाइज किया जाता है, जोकि कई पाथ के जरिए एस्सेस किया जाता है।
Relational Database:- इसके अंतर्गत डाटा स्ट्रक्चर फॉर्मेट में स्टोर होता है और इसमें डाटा रो और कॉलम फॉर्मेट में होता है, इसे शॉर्ट फॉर्म में हम RDBMS भी कहते हैं। यह हमारा रिलेशनल डेटाबेस है जिसमें टेबल की वैल्यू एक-दूसरे से जुड़ी होती है जिस वजह से इस डेटाबेस के अंतर्गत किसी स्पेसिफिक वॉल्यूम को लोकेट करना आसान होता है।
Object-oriented Database:- ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड डाटाबेस में डाटा ऑब्जेक्ट के फॉर्मेट में स्टोर होता है, जो डाटा को डिस्प्ले करता है उसे स्ट्रक्चर को हम क्लास कहते हैं, इसके अंतर्गत डाटा और उसके बीच का रिलेशन एक सिंगल स्ट्रक्चर फॉर्म में होता है और उसी को हम ऑब्जेक्ट कहते हैं।
Centralized Database:- सेंट्रलाइज्ड डेटाबेस का अधिकतर इस्तेमाल यूनिवर्सिटीज और कॉलेज की लाइब्रेरी में किया जाता है, जोकि सेंट्रल लाइब्रेरी से कनेक्ट होता है। इसके अंतर्गत डाटा को सेंट्रलाइज्ड डाटाबेस सिस्टम में स्टोर किया जाता है और इसके अंतर्गत स्टोर डाटा को यूजर कहीं से भी एक्सेस कर सकता है।
Distributed Database:- यह डेटाबेस सेंट्रलाइज डेटाबेस के उल्टा होता है, क्योंकि इसके अंतर्गत डाटा को किसी संस्था के दूसरे डाटा के साथ डिसटीब्यूट किया जाता है और यह सभी डेटाबेस एक दूसरे से कम्युनिकेशन लिंक के जरिए जुड़े होते हैं।
Cloud Database:- क्लाउड डाटाबेस के अंतर्गत स्टोर होने वाला डाटा वर्चुअल एनवायरमेंट में स्टोर होता है और साथ ही यह पूरे क्लाउड कंप्यूटिंग प्लेटफार्म पर एग्जीक्यूट होता है।
Personal Database:- पर्सनल डेटाबेस नाम से ही पता चल रहा है कि पर्सनल डाटा को स्टोर करने के लिए है। इसके अंतर्गत डाटा को यूजर के डिवाइस से कनेक्ट करके स्टोर किया जाता है।
Operational Database:- इसके अंतर्गत डाटा को रियल टाइम पर क्रिएट और अपडेट किया जाता है, ऐसे डेटाबेस का इस्तेमाल बिजनेस में होने वाले रोजाना डाटा ऑपरेशन को एग्जीक्यूट करने और डिजाइन करने व हैंडल करने के लिए किया जाता है।
Enterprise Database:- ऐसे डाटाबेस का इस्तेमाल किसी बड़े ऑर्गेनाइजेशन या इंटरप्राइजेज के द्वारा किया जाता है, जहां बड़े स्तर पर डेटा को मैनेज करने की जरूरत होती है जिससे कि वह अपने संस्था एफिशिएंसी को ज्यादा से ज्यादा इंप्रूव कर सके।
DBMS के उदाहरण?
Database management system के कुछ उदाहरण नीचे आपको विस्तार से बताए गए हैं।
Oracle:- यह एक तरह का व्यवसायिक रिलेशनल डेटाबेस मैनेजमेंट है और ये एंटरप्राइज स्केल डाटाबेस तकनीक का इस्तेमाल करता है, इसे क्लाउड या फिर ऑन प्रिमाइसेस पर स्टोर किया जाता है।
MySQL:- इसकी शुरुआत वर्ष 1955 में oracle के माध्यम से की गई थी, यह एक प्रकार का ओपन सोर्स रिलेशनल डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम है और स्ट्रक्चर क्वेरी लैंग्वेज पर आधारित है। यह सभी प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम को सपोर्ट करता है, इसका ज्यादातर इस्तेमाल फेसबुक या यूट्यूब पर देखने को मिला है।
SQL server:- यह भी रिलेशनल डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम है, इसे माइक्रोसॉफ्ट कंपनी द्वारा विकसित किया गया है और ये स्ट्रक्चर क्वेरी लैंग्वेज पर आधारित है।
Microsoft access:- यह माइक्रोसॉफ्ट द्वारा संचालित Database management system है जोकि रिलेशनल माइक्रोसॉफ्ट जेट डेटाबेस इंजन को एक सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट टूल और ग्राफिकल यूजर इंटरफेस के साथ जोड़ती है, इसका ज्यादातर इस्तेमाल छोटे और बड़े दोनों डेटाबेस को डिवेलप करने के लिए किया जाता है।
MS Fox Pro:- यह भी एक डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम है, जिसे फॉक्स सॉफ्टवेयर के द्वारा शुरू किया गया था हालांकि अब यह माइक्रोसॉफ्ट के संरक्षण के अंतर्गत आता है। DBMS होने के साथ ही यह टेक्स्ट संबंधित ओरिएंटेड प्रोग्रामिंग लैंग्वेज भी है। यह DBMS होने के साथ RDBMS भी है।
DBMS का इतिहास (History of DBMS in Hindi)
सबसे पहले वर्ष 1960 में Charles Bachman ने अपना पहला डीबीएमएस डिजाइन किया, इसके बाद वर्ष 1970 में Information Management System (IMS) को Ted Codd ने आईबीएम के लिए डिजाइन किया जिसका इस्तेमाल पहली बार रिलेशनल मॉडल में हुआ। वर्ष 1976 में Entity-Relationship Model को Peter Chen के द्वारा डिजाइन किया गया जिसे हम E-R Model के नाम से भी जानते हैं।
इसके बाद 1980 में रिलेशनल मॉडल के बेसिस पर डीबीएमएस का इस्तेमाल काफी ज्यादा होने लगा और तब SQL को ANSI और ISO ने अडॉप्ट किया, और फिर 1985 में ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड डाटाबेस को डिजाइन किया गया। इसी के साथ 1990 दशक में ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड और रिलेशनल डाटाबेस का समावेशन होता है और फिर 1991 में माइक्रोसॉफ्ट ने एमएस एक्सेस को पर्सनल डाटा बेस मैनेजमेंट सिस्टम के तौर पर विंडोज में स्थापित किया। इस तरह से 1995 में पहला इंटरनेट डाटा बेस का उपयोग किया गया।
DBMS के फायदे?
डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम के कई फायदे हैं जो कि नीचे आपको बताए गए हैं।
- डाटा माइग्रेशन की सहायता से फ्रिक्वेंट यूज होने वाले डाटा को इस तरह से स्टोर कर सकते हैं कि उसे आसानी से एक्सेस किया जा सके।
- डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम की वजह से एप्लीकेशन के डेवलपमेंट में समय कम लगता है।
- Data atomicity बहुत ही आवश्यक होती है इसके अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जाता है कि किसी भी तरह का ट्रांजैक्शन हमेशा पूरा होना चाहिए यदि ट्रांजैक्शन पूरा नहीं होता है और आपका पैसा कट जाता है तो आपका रिफंड कर दिया जाता है।
- यह multi-user एनवायरनमेंट को आसानी से सपोर्ट करता है।
- फाइल प्रोसेसिंग सिस्टम की अपेक्षा में डेटाबेस ज्यादा कंसिस्टेंट होता है।
- आपकी प्राइवेसी का पूरा ध्यान रखा जाता है और डाटा एडमिनिस्ट्रेटर यह देखता है कि कौन सा यूजर किस लेवल के डाटा को एक्सेस कर रहा है।
- इसके अंतर्गत डाटा को सिक्योर करना आसान है बिना इजाजत के कोई भी आपका डाटा एक्सेस नहीं कर सकता।
- इसके अंतर्गत केवल ऑथराइज्ड यूजर के बीच ही डाटा शेयर किया जाता है।
यह डाटा दोहराव को कम करता है।
DBMS के नुकसान?
इसके बहुत से फायदे हैं तो इसके कुछ नुकसान भी हैं जो कि यहां आपको बताए गए हैं।
- इसके अंतर्गत कई बार कॉन्प्लेक्स सिस्टम देखने को मिलता है।
- इसके हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का खर्च ज्यादा है।
- इसमें एप्लीकेशन प्रोग्रामर, ऑपरेटर जैसे स्टाफ की जरूरत पड़ती है जिसके लिए उन्हें इसकी ट्रेनिंग भी देनी पड़ती है।
- यह काफी बड़ा सॉफ्टवेयर है जिसे चलाने के लिए सिस्टम में अधिक जगह और बड़ी मेमोरी की जरूरत पड़ती है।
- इसके अंतर्गत कई फाइलें एक ही डेटाबेस में संग्रहित होती है जिस वजह से डेटाबेस फेलियर की संभावना बढ़ जाती है और ऐसे में डाटा के लूज होने की संभावना होती है।
DBMS में Architecture
Database management system के अंतर्गत आर्किटेक्चर के 3 लेवल है जो कि नीचे आप को समझाएं गए हैं।
1. External or View Level
2. Physical Or Internal Level
3. Logical or Conceptual Level
External or View Level:- इस लेवल को व्यू लेवल के नाम से भी जाना जाता है, इसके अंतर्गत जो यूजर डीबीएमएस का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें बताया जाता है कि डेटाबेस कैसा दिखेगा, यह end Level यूजर होता है, इसके अंतर्गत अलग-अलग यूजर को अलग-अलग व्यू दिखाया जा सकता है।
Physical Or Internal Level:- इसके अंतर्गत यूजर को बताया जाता है कि डाटा फिजिकल लेवल पर कैसे स्टोर होता है इसे आप इंटरनल लेवल के रूप में जानते हैं, इसके अंतर्गत स्पेस एलोकेशन डिसाइड किया जाता है और साथ ही फिजिकल एजुकेशन के लिए किस फाइल सिस्टम का इस्तेमाल करना है यह भी डिसाइड किया जाता है, किसी भी रिकॉर्ड की प्लेसमेंट भी यही डिसाइड की जाती है और साथ ही डाटा के इंक्रिप्शन या कंप्रेशन की टेक्निक भी इसी जगह पर डिसाइड होती है।
Logical or Conceptual Level:- इसे आप लॉजिकल लेवल के नाम से भी जानते हैं, यहां पर आप देख सकते हैं कि आपके डेटाबेस में कौन सा डाटा स्टोर हो रहा है और जो भी डाटा स्टोर हो रहा है उसके बीच आप रिलेशन भी देख सकते हैं। इसके अलावा लॉजिकल लेवल के अंतर्गत आप data के constraints क्या है, data की semenatic information, security से related information आदि प्राप्त कर सकते हैं।
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