DNS क्या है?
डोमेन नेम को आईपी ऐड्रेस में चेंज करने का काम जिस सिस्टम के द्वारा किया जाता है उसे ही इंटरनेट की भाषा में डोमेन नेम सिस्टम कहा जाता है, जिसे की संक्षेप में DNS कहते हैं।
इसी प्रणाली की वजह से हमारे द्वारा जब किसी भी वेब ब्राउज़र में कुछ भी सर्च किया जाता है तो उसके पश्चात डोमेन नेम सिस्टम संबंधित वेबसाइट से इंफॉर्मेशन प्राप्त करके वेब ब्राउजर की स्क्रीन पर यूजर को दिखाने का काम करता है।
ऐसे डिवाइस जिसमें यूजर किसी ब्राउज़र का इस्तेमाल इंटरनेट चलाने के लिए करते हैं उन सभी डिवाइस में एक आईपी एड्रेस मौजूद होता है जो कि यूनिक अर्थात बिल्कुल अलग ही होता है। यह आईपी ऐड्रेस IPv4 (198.15.48.17) या IPv6 (2100:Cb05:1840:1:D121:F8c2) के फॉर्मेट में होता है।
जितने भी डिवाइस होते हैं उनका ip-address कुछ अजीबोगरीब फॉर्मेट में होता है, जिसे याद रखना इंसानों के बस की बात नहीं होती है, क्योंकि इंसान आसान से शब्दों को तो याद रख सकता है परंतु जिनमें शब्द और अंक दोनों ही होते हैं उन्हें याद रखना मुश्किल होता है। इसीलिए इंटरनेट पर उपलब्ध वेबसाइट को एक्सेस करने के लिए डोमेन नेम का निर्माण किया गया।
डोमेन नेम शब्दों के तौर पर होता है। इसीलिए इसे पढ़ना भी आसान होता है साथ ही इसे याद रखना भी आसान होता है और हम आसानी से डोमेन नेम को टाइप करके संबंधित वेबसाइट पर पहुंच भी सकते हैं। हालांकि सॉफ्टवेयर शब्दों के तौर पर डोमेन को पहचान नहीं पाता है। इसलिए इस जगह पर डोमेन नेम सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है।
क्योंकि डोमेन नेम सिस्टम के द्वारा ऐसे ip-address को अंकों में कन्वर्ट किया जाता है जो शब्दों में लिखे गए होते हैं और फिर वेब ब्राउजर उस आईपी ऐड्रेस को सही प्रकार से समझता है। और वेब ब्राउज़र को यह पता चल जाता है कि यूजर कौन सी वेबसाइट पर जाना चाहता है अथवा यूज़र ने जो सर्च किया है वह कौन सी वेबसाइट से संबंधित है।
DNS का फुल फॉर्म क्या है?
Domain Name System
डीएनएस का फुल फॉर्म अंग्रेजी भाषा में डोमेन नेम सिस्टम होता है और हिंदी भाषा में डोमेन नेम सिस्टम को डोमेन नाम प्रणाली कहा जाता है।
DNS Record क्या होता है?
डोमेन नेम सिस्टम के द्वारा अपने पास सभी वेबसाइट के आईपी ऐड्रेस को और उनके डोमेन नेम को व्यवस्थित ढंग से रखने का काम करता है। इसे ही डोमेन नेम सिस्टम रिकॉर्ड कहा जाता है जिसके अलग-अलग प्रकार होते हैं, जैसे कि A, AAA, CNAME, MX, TXT, इत्यादि।
Domain Name Space क्या है?
डोमेन नेम सिस्टम का जो डेटाबेस होता है उसी डेटाबेस के स्ट्रक्चर को ही डोमेन नेम स्पेस कहते हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डोमेन नेम सिस्टम का डेटाबेस का जो स्ट्रक्चर होता है वह इनवर्टेड पेड़ के जैसे ही होते हैं, जिसके जीरो लेवल को रूट कहते हैं।
डोमेन नेम स्पेस के डेटाबेस के स्ट्रक्चर में टोटल 128 लेवल अवेलेबल होते हैं। इसमें लेवल की शुरुआत 0 से लेकर के 128 लेवल तक होती है और इसमें 0 लेवल को रुट कहा जाता है।
DNS का इतिहास (History of DNS in Hindi)
इंटरनेट का जब निर्माण हुआ था तब इतनी ज्यादा वेबसाइट मौजूद नहीं थी, क्योंकि दुनिया भर में टेक्नोलॉजी की काफी कमी थी और अधिकतर देशों में लोगों के पास कंप्यूटर/ स्मार्टफोन जैसे सिस्टम भी कम ही उपलब्ध थे।
परंतु जैसे-जैसे इंटरनेट का फैलाव दुनिया के अन्य देशों में होता गया और लोगों के पास कंप्यूटर, लैपटॉप और स्मार्टफोन की उपलब्धता होने लगी, वैसे वैसे काफी तेज गति के साथ इंटरनेट पर अलग-अलग वेबसाइट और ब्लॉग का निर्माण होना चालू हो गया।
और जब वेबसाइट की संख्या लगातार बढ़ती जाने लगी तो किसी भी वेबसाइट की आईपी एड्रेस को याद रखना काफी मुश्किल काम होने लगा। इसी समस्या को देखते हुए और इस समस्या से निजात दिलाने के लिए अमेरिका देश में रहने वाले साइंटिस्ट Paul Mockapetris के द्वारा साल 1980 में डोमेन नेम सिस्टम की खोज की गई।
इसकी खोज होने के पश्चात वेबसाइट के एड्रेस को डोमेन नेम का नाम दिया जिसकी वजह से सामान्य इंसान को भी किसी वेबसाइट के ip-address को याद रखने में काफी सरलता होने लगी और इस प्रकार से डोमेन नेम सिस्टम की शुरुआत हुई, जो आज वेबसाइट के लिए और यूजर के लिए काफी सहायक साबित हो रही हैं।
DNS कैसे काम करता है?
जब हम किसी भी डोमेन नेम या फिर ip-address को इंटरनेट पर सर्च करते हैं तो उसके पश्चात डोमेन नेम सिस्टम के द्वारा ip-address में डोमेन नेम को कन्वर्ट करने का काम किया जाता है। यह प्रक्रिया होने पर कंप्यूटर को इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि आखिर यूजर किस वेबसाइट पर जाना चाहता है अथवा यूज़र ने किस वेबसाइट को सर्च किया हुआ है।
कंप्यूटर के द्वारा जब ip-address को आईडेंटिफाई कर लिया जाता है, तब कंप्यूटर लोकल कैच में आपने जो भी वेबसाइट सर्च की हुई है उसे खोजने का काम करता है, क्योंकि यहां पर आपके द्वारा हाल ही में जो भी चीजें सर्च की गई होती है वह सभी चीजें सुरक्षित होती हैं।
अगर कंप्यूटर को लोकल कैच में जानकारी मिल जाती है तो वह आपको आपके ब्राउज़र पर संबंधित रिजल्ट दिखाना चालू करता है। अगर नहीं प्राप्त हो पाती है तो कंप्यूटर रिक्वेस्ट को इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के पास सेंड कर देता है, क्योंकि इस जगह पर सभी लोकप्रिय वेबसाइट की इनफार्मेशन उपलब्ध होती है।
यहां पर अगर कंप्यूटर को जानकारी मिलती है तो उसे कंप्यूटर के द्वारा वेबपेज की स्क्रीन पर दिखाया जाता है परंतु अगर यहां भी जानकारी उपलब्ध नहीं होती है तो आपका सवाल उसके पश्चात डोमेन नेम सिस्टम रूट नेमसर्वर के पास चला जाता है, क्योंकि इस जगह पर डोमेन नेम की सभी इंफॉर्मेशन अवेलेबल रहती है।
डोमेन नेम सर्वर यूजर के द्वारा जो रिक्वेस्ट की गई है उसका रिव्यू करता है और फिर उसे Authoritative Name Server के पास सेंड कर देता है। इसके बाद डोमेन से रिलेटेड आईपी ऐड्रेस से इंफॉर्मेशन प्राप्त करने के बाद वापस जानकारी आपके वेब ब्राउज़र के स्क्रीन पर आती है, जिसकी वजह से आप संबंधित वेबसाइट को एक्सेस कर सकते हैं।
DNS के प्रकार (Type of DNS in Hindi)
डोमेन नेम सिस्टम के मुख्य तौर पर दो प्रकार हैं, जो कि निम्नानुसार हैं।
- Public Domain Name System
- Private Domain Name System
1: सार्वजनिक डोमेन नाम प्रणाली
इसे पब्लिक डोमेन नेम सिस्टम कहा जाता है। इंटरनेट देने वाली कंपनी के द्वारा वेबसाइट के मालिकों के लिए साथ ही सामान्य जनता के लिए पब्लिक डोमेन नेम सिस्टम को उपलब्ध करवाया जाता है।
इसका साफ तौर पर यह अर्थ होता है कि अगर आपके पास अपनी खुद की कोई वेबसाइट है तो दूसरे लोग भी उसके डोमेन नेम सिस्टम के बारे में जान सकते हैं और आपकी वेबसाइट तक विजिट कर सकते हैं।
2: निजी डोमेन नाम प्रणाली
निजी डोमेन नाम प्रणाली को प्राइवेट डोमेन नेम सिस्टम कहा जाता है। प्राइवेट डोमेन नेम सिस्टम सभी लोगों के लिए मौजूद नहीं होता है। जिन लोगों के पास अपनी खुद की वेबसाइट है सिर्फ उनके लिए ही यह अवेलेबल होता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि प्राइवेट डोमेन नेम सिस्टम फायरवॉल के द्वारा सुरक्षित होते हैं। ऐसे लोगों के लिए यह काफी काम का होता है जिनके पास अपनी खुद की वेबसाइट है और वह यह चाहते हैं कि उनकी वेबसाइट सामान्य लोगों के लिए उपलब्ध ना हो।
DNS Server Not Responding का क्या मतलब होता है?
इसका मतलब होता है कि डोमेन नेम सिस्टम के साथ कम्युनिकेट करने का प्रयास तो किया गया परंतु सरवर रिजल्ट नहीं दे पाया अर्थात सर्वर रिजल्ट देने में फेल हो गया।
इसके पीछे कुछ ना कुछ कारण अवश्य होता है, जिसमें मुख्य कारण यह होता है कि आप जिस डिवाइस में वेब ब्राउज़र का इस्तेमाल कर रहे हैं उस डिवाइस में जो इंटरनेट कनेक्शन है उसकी स्पीड काफी धीमी है या फिर परमानेंट नहीं है, जिसकी वजह से आपको उपरोक्त समस्या का सामना करना पड़ता है।
इसके अलावा हो सकता है कि आप जो वेब ब्राउज़र का इस्तेमाल कर रहे हैं वह पुराना हो चुका हो और आपको उसे अपडेट करने की आवश्यकता हो।
DNS के फायदे?
डोमेन नेम सिस्टम के फायदे निम्नानुसार है।
- अगर दुनिया भर में किसी ऐसी एकमात्र प्रणाली के बारे में बात की जाए, जिसके द्वारा हम सरलता से इंटरनेट पर किसी भी चीज को सर्च कर सकते हैं तो वह प्रणाली डोमेन नेम सिस्टम ही होगा।
- वेब ब्राउज़र में किसी वेबसाइट को सर्च करने के दरमियान टाइपिंग करने में जो गलती होती है उसे डोमेन नेम सिस्टम के द्वारा ऑटोमेटिक ही सही कर दिया जाता है जिसकी वजह से आप सही रिजल्ट तक पहुंच पाते हैं।
- डोमेन नेम सिस्टम में जो भी समस्याएं आती हैं उसे सॉल्व करने के लिए रूट नेमसर्वर हमारे लिए सहायक साबित होता है, क्योंकि रूट सर्वर के द्वारा top-level डोमेन पर काम किया जाता है और इसीलिए इसके पास सभी टॉप लेवल डोमेन की जानकारी उपलब्ध होती है।
- जहां पहले किसी भी वेबसाइट के ip-address को याद रखना हमारे लिए कठिन होता था, वही डोमेन नेम सिस्टम की वजह से ही हम किसी भी वेबसाइट के ip-address को आसानी से याद रख सकते हैं, क्योंकि यह शब्दों में होते हैं। पहले ip-address अंकों में होते थे।
- अगर हमें किसी वेबसाइट का डोमेन नेम पता है तो हम सरलता से उसे सर्च कर सकते हैं और उस वेबसाइट तक पहुंच सकते हैं। यह सुविधा भी डोमेन नेम सिस्टम की वजह से मिल पाती है।
- डोमेन नेम सिस्टम के द्वारा वेबसाइट को हाई लेवल की सिक्योरिटी उपलब्ध करवाई जाती है।
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