अपने URL का नाम तो जरूर सुना होगा क्योंकि इंटरनेट की दुनिया में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। ऐसे में हमारे मन में इसके बारे में जानने की उत्सुकता बनी रहती है इसीलिए आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से बताने वाले हैं URL क्या है?, URL कैसे काम करता है? URL का फुल फॉर्म क्या है? एवं इससे जुड़ी सभी जानकारी चाहिए बिना किसी देरी के इस पोस्ट को शुरू करते हैं।
इंटरनेट में लाखों-करोड़ों website मौजूद है जिनका सीधा कनेक्शन URL से क्योंकि बिना URL के किसी website तक पहुंचना बिल्कुल असंभव है। उदाहरण के लिए यदि हमें एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिजली ले जाना है तो ऐसे में हम कोई कॉपर तार या सुचालक का उपयोग करेंगे। तभी बिजली गंतव्य स्थान तक पहुंच पाएगी। बिल्कुल उसी तरह से URL कॉपर की तरह कार्य करता है जो हमारे गंतव्य स्थान यानी website, पेज, पोस्ट तक पहुंचाने का कार्य करता है तो आइए इसके बारे में अब विस्तार से जानते हैं।
आजके इस पोस्ट में हम आपको यूआरएल से जुड़ी सभी जानकारी देने वाले हैं, चलिए सबसे पहेले देखते हैं की आख़िर URL क्या है?
URL क्या है? (What is URL in Hindi)
URL का पूर्ण रूप Uniform resource locator होता है। इसको आप साधारण भाषा में कोई पेज या website का Address समझ सकते हैं। इंटरनेट में सभी website या पेज की कोई ना कोई URL लिंक होती है उसके जरिए ही उस पर सटीक तरीके से पहुंचा जा ता है। अलग-अलग पेज या website की यूनिक URL लिंक होती है।
URL text formatted रूप में होता है जिसके जरिए web browser या किसी अन्य सॉफ्टवेयर में नेटवर्क के स्रोत को खोजने के लिए उपयोग करते हैं।
किसी सॉफ्टवेयर या वेब ब्राउजर मैं नेटवर्क के स्रोत को खोजने के लिए URL का उपयोग करते हैं। URL टेक्स्ट फॉर्मेटेड के रूप में होता है। URL web server के मालिक के द्वारा बनाया जाता है और उसी के द्वारा कंट्रोल भी किया जाता है।
URL का फुल फॉर्म (Full Form of URL in Hindi)
URL का पूर्ण रूप Uniform resource Locator (यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर) है।
URL Web Page को Access कैसे करता है?
URL के माध्यम से web page को एक्सेस किया जाता हैं। इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं – जब भी किसी web page को web browser में ओपन (open) करना होता है, तो वह सबसे पहले कंप्यूटर server या कंप्यूटर होस्ट (host) का पता लगाया जाता है जिसमें पेज को पहले से ही स्टोर होता है।
इस पूरी प्रक्रिया में पता लगाने के लिए URL का दूसरा भाग के रूप में कार्य करता है जिसे हम domain (Domain) के नाम से भी जानते हैं। URL का दूसरा भाग अर्थात domain उस कंप्यूटर के आईपी ऐड्रेस (IP Address) का पता लगाने के बाद कंप्यूटर होस्ट के साथ TCP स्थापित करता है।
सफलतापूर्वक कनेक्शन स्थापित हो जाने के पश्चात web server द्वारा कनेक्शन करके उस protocol को File का नाम भेजा जाता है जिस browser में से हम ओपन कर रहे हैं। यह पूरी प्रक्रिया बहुत तेजी के साथ होती है और कुछ सेकंडो में web browser के माध्यम से पेज को ओपन कराए जाता है। इस प्रकार से पूरी प्रक्रिया में URL का मुख्य रोल होता है।
URL के प्रकार (Types of URL in Hindi)
URL को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
1. Absolute URL
इसे हम संपूर्ण URL कह सकते हैं क्योंकि इस प्रकार की URL में URL के सभी भाग मौजूद होते हैं और URL की सहायता से संसाधन (Resource) का आसानी से पता लगाया जा सकता है। website URL में Protocol, Domain Name, Domain extension, Directory, File Nmae इत्यादि सभी जानकारी होती है।
Absolute URL होने की वजह से server से web browser तक connect होने की प्रक्रिया आसान और सुरक्षित हो जाती है। इससे बीच में किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं होती। इसके लिए protocol, domain name, domain extension, directory file, इत्यादि उपस्थित होती है लेकिन यदि domain name या protocol में किसी भी प्रकार की कोई गड़बड़ी हुई तो browser server तक connect नहीं कर पाता वहीं
file name या directory में कोई गड़बड़ी होती है तो web browser server को connect कर लेता है लेकिन संसाधन को लोड नहीं कर पाता। इसी कारण से Absolute URL को पूर्ण रूप से बनाने के बाद ही इसे उपयोग में लाया जाता है।
Absolute URL Example – https://example.com/service/index.html
2. Relative URL
Relative URL ऐप्स लेट URL से काफी भिन्न होता है या केवल file name या directory से बना होता है। इस प्रकार के URL का उपयोग web server में उपस्थित मूल संसाधन को एक्सेस करने के लिए किया जाता है। directory को डायरेक्ट एक्सेस करने के लिए web ब्राउजर protocol या domain name की सहायता नहीं लेता सीधे server से connect हो जाता है।
लोकल होस्ट (local host) द्वारा इस तरह के URL का ज्यादातर इस्तेमाल किया जाता है। चौकी server से directory को एक्सेस करने के लिए web browser सीधे connect करता है इसलिए बीच में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं आती है।
Relative URL Example – index.html
URL के भाग?
जिस प्रकार से एक दीवार ईट के कई भाग से मिलकर बना होता है। उसी प्रकार से URL भी भागो से मिलकर बनता हैं। इंटरनेट पर मौजूद किसी web pages website फोटो वीडियो ऑडियो इत्यादि संसाधन तक पहुंचने के लिए आईपी एड्रेस की बचाई URL का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि URL को याद रखना ip address के मुकाबले थोड़ा आसान होता है।
एक URL में कई भाग होते हैं जिसका कुछ ना कुछ भागीदारी होता है। URL के अंदर इस website के web page का पता भी निश्चय होता है जिस संसाधन तक यूजर को पहुंचना है। URL को बारीकी से जानने के लिए आपको युवा दल के सभी भाग को जानना होगा जिसके बारे में हम नीचे बता रहे हैं। समानता किसी URL को बनाने में मुख्य रूप से निम्नलिखित भाग का उपयोग किया जाता है।
- Protocol
- Separator
- Subdomain
- Domain name
- Domain Extension
- Directory
- Resources
यह कुल 7 भाग से ही एक URL को बनाने का काम करते है। URL की संरचना में इनकी अहम योगदान होती है। URL के अनुरूप खास संरचना को URL syntex कहते हैं अर्थात URL Structure को परिभाषित करने के लिए URL Syntex कार्य करता है।
आप किस प्रकार समझते सकते हैं कि किसी URL का ढांचा क्या होना चाहिए किस ढंग से लिखा जाना चाहिए किस प्रकार उसके अनुरूप होंगे यह कॉल URL Syntex की मदद से पता चलता है। आइए अब हम एक-एक करके URL के सभी भाग को समझते हैं।
1# Protocol
Protocol URL का वह हिस्सा होता है जिसमें यह पता चलता है कि संसाधन कैसे प्राप्त होगा protocol सामान्यता एक server और browser के बीच का कार्य करता है। इसका मुख्य काम संसाधन तक पहुंचना होता है।
वर्तमान समय में सबसे लोकप्रिय और सुरक्षित protocol की बात करें तो एचटीटीपीएस है। यह server में मौजूद संसाधन का पता लगाता है। एचटीटीपीएस इंक्रिप्शन का प्रयोग करता है और सुरक्षित तरीके से संसाधन का पता लगाता है। आपके मन में यह सवाल होगा कि आखिर इंक्रिप्शन होता क्या है तो हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि browser और server के बीच एचटीटीपीएस की तरफ से इन कोर्ट किया जाता है ताकि संसाधन या सूचना को सुरक्षित तरीके से ट्रांसफर किया जा सके।
वर्तमान समय में डाटा चोरी होने की मात्रा काफी बढ़ गई है। इसी कारण से इंक्रिप्टेड संसाधन को उस समय तक डिकोड नहीं किया जाता जब तक यूज़र browser और server संसाधन तक ना पहुंच जाए। इस प्रकार से चोरी होने का डर नहीं होता जब server और browser के बीच डाटा को ट्रांसफर किया जाता है। मान ले यदि किसी कारणवश डाटा चोरी भी होता है तब भी संसाधन का दुरुपयोग करना संभव नहीं है इसका सीधा कारण यह है कि इसे उपयोग करने के लिए सबसे पहले रिकॉर्ड करने की आवश्यकता होगी और यह काम बहुत मुश्किल है।
आपकी जानकारी के लिए बता दो कि इससे पहले web साइट्स और web page को सुरक्षित रखने के लिए एचटीटीपीएस का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। server और browser के बीच डाटा ट्रांसफर के लिए भी एचटीटीपी का ही इस्तेमाल किया जाता था जो इंक्रिप्टेड नहीं होता था जिससे डाटा चोरी होने का खतरा लगा रहता था। इसी समस्या को देखते हुए ही एचटीटीपीएस लाया गया जिसे आप एचटीटीपी का सुरक्षित वर्जन कह सकते हैं।
प्रत्येक URL की शुरुआती हिस्सा को protocol कहते हैं यह ज्यादातर एचटीटीपी या एचटीटीपीएस शुरुआत होता है इसके अलावा भी कुछ ऐसे स्टैंडर्ड protocol है जिसका इस्तेमाल विशेष website्स को दर्शाने के लिए किया जाता है जैसे FTP URL file URL news URL Mali to URL tellnet URL tell URL magnet URL market URL इत्यादि। आइए इन प्रत्येक protocol के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं।
HTTP URL: इस प्रकार की URL को web page को ओपन करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। पोर्ट नंबर के साथ शुरू होने के लिए domain के बाद HTTP URL का उपयोग किया जाता है जैसे http://www.example.com/index.html
HTTPS URL: HTTPS HTTP URL से बना होता है। HTTPS URL, HTTP से सुरक्षित होने के साथ-साथ थोड़ा भिन्न होता है। इंटरनेट में Data को सुरक्षित रखने के लिए HTTPS URL का इस्तेमाल किया जाता है। क्रिप्टोग्राफी से सुरक्षित होने वाले URL में से एक HTTPS URL है। उदाहरण के लिए https:www.example.com/index.html
FTP URL: FTP URL का फुल फॉर्म File ट्रांसफर Protocol URL होता है इस प्रकार के URL का विशेष रूप से उपयोग File को एक से दूसरे लोकेशन तक ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है। इसमें यूजर का नाम और पासवर्ड के पहले FTP URL का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए ftp://ftp.example.com/file.txt
Malito URL: इसे आप URL ना समझ कर एक लिंक समझ सकते हैं जिसे किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को ईमेल भेजने का कार्य किया जाता है। ज्यादातर इस प्रकार के URL को ई-मेल आदान-प्रदान के लिए उपयोग में लाया जाता है। इस प्रकार के लिंक किया URL में ईमेल Address उपस्थित होता है। उदाहरण के लिए malito:[email protected]
Tel URL: यह वैसे URL होते हैं जिनमें टेलीफोन नंबर उपस्थित होता है इसे विशेष तौर पर एक दूसरे से संचार के लिए उपयोग किया जाता है। टेली URL का उपयोग कर फोन कॉल किया जा सकता है। यह भी एक प्रकार का Address होता है जिसके जरिए अन्य व्यक्ति के साथ संचार किया जा सकता है। उदाहरण के लिए 0123456789
Data URL: Data URL में संदेश छुपा होता है इस प्रकार के URL पिन कोड युक्त होते हैं जिससे इंजेक्ट किया जाता है वह पुष्टि के लिए। Data URL डेटा युआरएल में Data को ट्रांसफर करने के लिए इस प्रकार के URL का इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण data:text/plain;base45,SGVsbG9gV15ybGQh
News URL: News URL का ज्यादातर उपयोग News पब्लिशर website्स करते हैं। किस प्रकार के URL का इस्तेमाल समाचार घटना अथवा नवीनतम समाचार संबंधित सामग्री के लिए उपयोग किया जाता है।
अपनी अक्सर News website मैं इस प्रकार के युआरएल देखा हुआ जिसमें मुख्य डोमन name से पहले इस्तेमाल किया जाता है। domain से पहले News शब्द लगा होने से News website का संकेत मिलता है। उदाहरण के लिए news://example.com/articles/2474454
File URL: File URL का उपयोग website से बाहर कार्यों को करने के लिए किया जाता है इस प्रकार के URL का विशेष रूप से File या फोल्डर को डाउनलोड या फिर अपलोड करने के लिए किया जाता है।
File URL की मदद से किसी भी website में संग्रहित File या फोल्डर को आसानी से लोकेट किया जा सकता है यह बाकी URL से काफी अलग होता है। File URL को एक्सेस करने पर सीधे उस फोल्डर तक पहुंचा जा सकता है जिसकी आवश्यकता हो। उदाहरण के लिए file:///C:/example/file.txt
Magnet URL: आपने टोरेंट फ़ाइल का नाम तो सुना ही होगा टॉरेंट File को डाउनलोड करने के लिए Magnet File का उपयोग किया जाता है। इसे आप एक प्रकार का protocol समझ सकते हैं जो Magnet लिंक के नाम से भी यह URL जाना जाता है।
टोरेंट File का इस्तेमाल करने वाले यूजर अधिकतर Magnet URL का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए magnet: xt=urn:btih:12a90b1b6f14bf3c4a1a9f2a84f2684e82f0c4d8&dn=example+file&tr=udp://tracker.example.com:10
Steam URL: Steam URL को अगर आसान भाषा में समझा जाए तो इस प्रकार के URL का उपयोग गेम्स के लिए किया जाता है। किसी संग्रहित गेम तक पहुंचने के लिए Steam URL का उपयोग करते हैं।
Steam URL प्रकार के लिंक पर क्लिक करने से सीधे उस गेम को एक्सेस किया जा सकता है। जैसे steam://run/162345
Market URL: यदि आप एक एंड्राइड यूजर है तो आपने Market URL का उपयोग किया होगा क्योंकि ज्यादातर Market URL का उपयोग एंड्रॉयड यूजर द्वारा किया जाता है। प्ले स्टोर पर उपस्थित किसी भी एप्लीकेशन तक पहुंचने के लिए Market URL का प्रयोग करते हैं।
Market URL की मदद से ही गूगल प्ले स्टोर में उपस्थित एप्लीकेशन तक पहुंचकर डाउनलोड किया जा सकता है। उदाहरण के लिए market://details?id=com.example.app
SIP URL: संचार क्षेत्रों में SIP URL का प्रयोग करते हैं। क्या एक आम protocol पता है जिससे वॉइस संचार उपकरणों के लिए इस्तेमाल करते हैं। ऐसे भी URL में वॉइस ओवर IP की मदद ली जाती है।
इसके अलावा कुछ अन्य प्रकार की URL भी होते हैं जिससे protocol की जानकारी प्राप्त होती है। जैसे URL पासवर्ड, URL स्कीम, URL पोर्ट इत्यादि। उदाहरण के लिए sip:[email protected]
- www क्या है और यह कैसे काम करता है? (WWW in Hindi)
- डोमेन नेम क्या है इसके प्रकार और इसे कैसे बनाते है? (Domain Nmae in Hindi)
2# Separator
Separator URL में एक मुख्य रोल प्रदान करता है। इसे आप Space समझ सकते हैं जैसे (Ravi Kumar) यदि आप अपना Name और Title लिखना चाहते हैं तो नाम को टाइटल से अलग करने के लिए स्पेस का इस्तेमाल करते हैं उसी प्रकार से URL में Separator की मदद से URL के एक अंश से दूसरे अंश को अलग दर्शाने के लिए Special Symbol या Sign का उपयोग किया जाता है
ताकि यह सुनिश्चित की जाए की URL में किस संसाधन के बारे में लिखा गया है। उदाहरण के लिए एचटीटीपी या एचटीटीपीएस के बाद के हिस्से को अलग करने के लिए (://) का इस्तेमाल किया जाता है।
यहां इस बात का ध्यान रखें कि इस (://) का इस्तेमाल केवल protocol को URL के अन्य भाग से अलग करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है बाकी यदि URL के भाग को केवल अलग करना हो तो (/) का इस्तेमाल करेंगे।
3# Subdomain
यह URL का वह हिस्सा होता है जिसका उपयोग Protocol और Domain Name के बीच किया जाता है अर्थात एक URL में Protocol के बाद Subdomain का इस्तेमाल किया जाता है। सबसे प्रचलित Subdomain में से एक (WWW.) है।
इन्टरनेट में सबसे अधिक इसी Subdomain में इनको प्रयोग में लिया गया है। इसे आसान भाषा में समझने के लिए https://www.futuretricks.org यहां Protocol https:// के बाद Subdomain www. उपयोग किया गया है।
हालांकि वर्तमान समय में केवल इसी Subdomain का इस्तेमाल करना जरूरी नहीं है। जैसे यदि आप इस पेज को www. के बिना https://futuretricks.org ओपन करेंगे तब भी पेज आसानी से ओपन होगा।
इसके अलावा website owner अपने अनुसार भी subdomain रख सकते हैं जिसका उदाहरण इस प्रकार हो सकता है। https://learn.futuretricks.org यहां आप देख सकते हैं। HTTPS protocol के बाद (learn.) इस्तेमाल किया गया है जो कि एक Subdomain है। इस बात से पुष्टि की जा सकती है कि www. subdomain होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
परंतु एक बात का ध्यान रखें कि www. के बजाय यदि अन्य Subdomain जैसे (eng.) (hiindi.) (school.) (academy.) का इस्तेमाल करते हैं तब यह उसी website के एक अलग शाखा को दर्शाएगी।
4# Domain name
Domain name की जानकारी आपको जरूर होगी, क्योंकि किसी website के नाम को ही domain name सामान्यता कहा जाता है। उदाहरण के लिए आप इस website के URL को देख सकते हैं यहां futuretricks website का नाम है और इसका domain name भी futuretricks है। आसान भाषा में कहें तो domain name से किसी भी website को पहचाना जा सकता है।
ज्यादातर संस्था या website ओनर website के नाम पर domain name रखते हैं क्योंकि इसे याद रखना काफी आसान हो जाता है और लोग सीधे website नाम की मदद से URL तक पहुंचते हैं।
5# Domain Extension
URL में domain name के बाद suffix का इस्तेमाल किया जाता है जिसे domain extension भी कहा जाता है यह website के कैटेगरी को दर्शाने का कार्य करता है।
इस प्रकार के domain के बाद उपयोग किए जाने वाले suffix को टॉप लेवल domain भी कहा जाता है। website अलग-अलग कैटेगरी में होती है जैसे यदि टॉप लेवल domain अर्थात डोमैंस fx.com हो तो कमर्शियल website, यदि डॉट ओआरजी तब ऑर्गेनाइजेशन, सती डॉट नेट तब नेटवर्क ऑर्गेनाइजेशन
इसी प्रकार से वर्तमान समय में बहुत सारे टॉप लेवल domain आ चुके हैं जिसको अलग-अलग कैटेगरी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि अलग-अलग देशों के लिए अलग-अलग Domain Extension होता है। उदाहरण के लिए: India – .in, Australia – .au, USA – .us इत्यादि।
6# Directory
Directory विशेष तौर पर website के सामग्री पर निर्भर करता है। जैसे यदि किसी website में केवल Articles Publish के जाते हैं तो ऐसे में आर्टिकल्स के लिए अलग directory होगी। उसी प्रकार से यदि केवल website पर वीडियो पब्लिश किया जाता हो तो Video के लिए अलग directory होगी जैसे https://futuretricks.org/articles Domain Suffix के पश्चात Directory name का इस्तेमाल किया जाएगा।
आसान भाषा में यदि बात करें तो जैसे फोन में वीडियो, ऑडियो के लिए अलग-अलग रखने की फोल्डर बनाए जाते है। उसी प्रकार से website पर directory होती है। फोल्डर के अंदर फोल्डर बनाया जा सकता है जिसे sub folder कह सकते है।
उसी प्रकार directory के अंदर directory बनाया जाता है जिसे Sub directory कहते हैं। website में अलग-अलग वीडियो, ऑडियो, आर्टिकल्स इत्यादि के लिए directory होती है जिसे Domain Suffix से website की directory चेक कर सकते हैं।
7# Resource
website की storage web server पर होता है इस server में photo, text, video, audio, document इत्यादि कई तरह के ऐसे file मौजूद होते हैं जिसको access करने के लिए URL का इस्तेमाल किया जाता है। इसे ही वास्तविक संसाधन यानी Resource कहा जाता है। file को पहचानने के लिए File Extension का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए – .png, .jpeg, .html, .php, .htm, .asp, .cgi आदि।
URL को आप एक प्रकार से संसाधनों को पहचानने के लिए protocol समझ सकते हैं जिसका इस्तेमाल इंटरनेट पर किया जाता है। यह एक प्रकार से पता (address) होता है जिसको संचारित तरीके से इसलिए लिखा जाता है ताकि एक यूनिक आईडेंटिफायर (unique identifier) के रूप में कार्य कर सकें।
इसके अलावा URL के कुछ अन्य प्रकार भी होते हैं जो निम्नलिखित है
Permalink: इस प्रकार की URL का उपयोग web page को ओपन करने के लिए किया जाता है किसी यूज़र द्वारा web page को पढ़ने या उस तक पहुंचने के लिए उपयोग करता है।
Dynamic URL: निजी सत्यापन के बिना जेनेरेट होने वाला URL को Dynamic URL कहते हैं। इस प्रकार की युआरएल स्थाई URL के web page से पहले आता है।
Short URL: किसी लंबे या जटिल URL को Short और आसान बनाने के लिए इस प्रकार का विवरण का उपयोग किया जाता है। लंबे आकार वाले URL को सोशल मीडिया या अन्य साझा करने में कठिनाई होती है इसीलिए इस प्रकार के URL को शार्ट किया जाता है।
- सॅटॅलाइट क्या है? इसके प्रकार और यह कैसे काम करता है? (Satellite in Hindi)
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URL का इतिहास (History of URL in Hindi)
Tim Berners-Lee के द्वारा पहली बार यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर के बारे में बताया गया। इन्होंने इंटरनेट में सभी web pages को आसानी से खोजने के लिए 90 के दशक में URL के बारे में बताया।
इनके द्वारा कहा गया कि URL की मदद से इंटरनेट में सभी web page एस website को लोकेट किया जा सकता है। इन्होंने HTML और Standard Language का उपयोग करते हुए web वर्ल्ड वाइड web का निर्माण किया जिसकी मदद से आज पूरी दुनिया में इंटरनेट का इस्तेमाल किया जाता है और फिर बाद में Hyperlink के द्वारा सभी web page को जोड़ दिया गया।
आज इनके द्वारा निर्माण किए गए URL की मदद से ही आप किसी भी website तक बहुत ही आसानी से पहुंच सकते हैं। इंटरनेट के उपयोग को आसान बनाने में Tim Berners-Lee का बहुत बड़ा योगदान है।
URL कैसे काम करता है?
इंटरनेट पर मौजूद किसी भी संसाधन तक पहुंचने के लिए हमारा browser IP का इस्तेमाल करता IP अर्थात इंटरनेट Protocol। IP की श्रृंखलाएं होती है जिसके उदाहरण है 79.166.52.99
अब जरा विचार कीजिए इंटरनेट पर मौजूद प्रत्येक web pages या website्स की अलग-अलग IP Address होती है यदि आपको IP address याद करना होता तो कितना मुश्किल भरा काम होता और आप आपको उस web pagesस या website तक पहुंचने में दिक्कत कितनी दिक्कत होती है यही कारण है कि URL को डिजाइन किया गया ताकि लोगों को IP Address याद ना करना पड़े और सही website या web page का पता आसानी से लगाया जा सके।
यह समय-समय पर बदलते रहते हैं इसीलिए इन तक पहुंच पाना भी मुश्किल हो जाता है यही कारण है कि URL के इस्तेमाल से web page एस का पता लगाया जाता है जिससे याद भी रखना ना पड़े और गंतव्य तक पहुंचा दी जा सके।
इंटरनेट में किसी web pages या website का पता लगाने के लिए जब हम ब्राउजर में कोई URL टाइप करते हैं तब उपयोग में लाया गया browser डी एन एस की सहायता से उस URL को IP address में परिवर्तित कर देता है ताकि उस web page के website तक आसानी से पहुंचा जा सके। इस प्रकार हमारे पास browser में उपस्थित डीएनएच की मदद से URL को IP Address का बदलकर काम में लिया जाता है और ip address से फिर URL में भी परिवर्तित किया जाता है।
URL में कौन से Characters का इस्तेमाल किया जाता है?
RFC 1738 के अनुसार URL में केवल AlphaNumeric का ही इस्तेमाल कर सकते हैं इसके अलावा कुछ Special Character हैं उदाहरण के लिए ,*,’,_),(!,$,- इनको भी हम URL के Strings में इस्तेमाल कर सकते हैं।
लेकिन आपके मन में यह सवाल आ सकता है कि यदि हम अन्य Character के इस्तेमाल करें तो क्या होगा? तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि URL Strings में आप यदि किसी और Character के इस्तेमाल करते हैं तो सबसे पहले उस encode करना पड़ेगा।
URL Shortening क्या होता है?
वर्तमान समय में आपने देखा होगा कि कई सारी website की URL लम्बी होती है जिसका मुख्य कारण है की URL Strings में बहुत सारे Character होते हैं जिसको शेयर करना काफी मुश्किल भरा काम होता है।
लंबे Strings URL होने की वजह से यूज़र के साथ-साथ उस website या कंपनी को भी परेशानी होती है। इसी समस्या को सुलझाते हुए कई सारी ऑनलाइन ट्रांसलेटर है जो लंबे स्ट्रिंग (Strings) वाले URL को Short करने का काम करती है जिसका इस्तेमाल आप किसी भी जगह कर सकते हैं।
इसके अलावा आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि बहुत सारे URL शार्टनिंग सर्विसेज प्रोवाइडर इंटरनेट में मौजूद है, जो आपको फ्री में URL Short करने की सर्विस देते हैं जिनके उदाहरण bit.ly.goo.gl है।
URL की विशेषताएं?
URL की कई विशेषताएं हैं जो आप निम्नलिखित देख सकते हैं:
- URL की मदद से किसी भी website यह web page को आसानी से एक्सेस किया जा सकता है।
- इंटरनेट browser संसाधन की लोकेशन तक connect करने के लिए URL का उपयोग किया जाता है।
- इंटरनेट पर मौजूद हर website, web pages, post के अलग-अलग unique URL होती है।
- URL के कई भाग होते हैं जिससे कि website का पता लगाया जाता है।
- URL को ओपन करने के लिए protocol और domain name के साथ domain extension का होना आवश्यक है।
URL का पता कैसे लगाएं?
URL का पता लगाना आज के समय में बहुत आसान हो गया है। इससे पहले हमने आपको बताया इंटरनेट पर मौजूद हर web pages website पोस्ट इत्यादि की एक unique URL होती है। इसके बारे में शायद आपको जानकारी होगी।
क्या आप किसी web pages या website के URL का पता लगाना चाहते हैं? यदि हां, तो यह काम आप अपने ब्राउजर में जाकर कर सकते हैं। URL का पता लगाने के लिए आपको अपने browser के URL बार को ओपन करना होगा। उदाहरण के लिए इस पोस्ट का URL पता करने के लिए आप browser में URL bar पर इस तरह का URL देखने को मिलेगा इसे ही URL कहते हैं। browser के URL बारे में अब website या web page के URL को पता करने के साथ-साथ उसे copy करके साझा भी कर सकते हैं।
यदि आप अपने मोबाइल फोन में मौजूद chrome browser की सहायता से किसी web page का URL पता करना चाहते हैं, तब आप वह पेज ओपन करें। web page या website ओपन करने के पश्चात आपको chrome browser पर ही दाहिनी और ऊपर कोने में तीन बिंदु (three dot) देखने को मिलेगा। उस पर क्लिक करें फिर आपको copy लिंक का विकल्प देखने को मिलेगा इस पर क्लिक करके आप सीधे उस website का URL को copy कर सकते हैं।
Web pages का URL browser के URL bar में होता है। वर्तमान समय में लगभग सभी browser में URL bar ऊपर में मौजूद होता है। परंतु यदि आप किसी वीडियो या इमेज का URL पता करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको शेयर बटन पर क्लिक करना होगा। इसके बाद यदि copy लिंक का विकल्प आए तो डायरेक्ट आप अपने clipboard पर URL को copy कर सकते हैं अन्यथा किसी को shre कर कर URL का पता लगा सकते हैं।
URL ओपन कैसे करते हैं?
क्या आपको URL ओपन करने में समस्या आ रही है? यदि हां तो हम आपको बता दें कि URL ओपन करने के लिए आपको एक browser की आवश्यकता होगी। जैसे chrome browser, Microsoft browser, bing इत्यादि। URL को ओपन करने के लिए browser की आवश्यकता होती है तभी website या web page को एक्सेस किया जा सकता है
चूँकि web ब्राउजर URL में उपस्थित ip address को संसाधन तक पहुंचाने का कार्य करती है। URL ओपन करने के लिए सबसे पहले आपको clipboard में URL को copy कर लेना है उसके बाद आपके डिवाइस में उपस्थित browser मैं जाए और फिर URL बाहर में paste कर दें।
URL paste करने के पश्चात सर्च करें इस प्रकार आप सीधे उस web pages या website पर पहुंच जाएंगे जिसका URL अपने paste किया है। URL ओपन होने में कुछ वक्त लग सकता है यह इंटरनेट स्पीड पर निर्भर करता है।
तो दोस्तों आशा करते हैं की अब आपको URL से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारी मिल चुकी होगी, और आप जान गये होगे की आख़िर यह URL क्या है?
FAQs
यूआरएल इंटरनेट पर उपस्थित किसी भी प्रकार का संसाधन का एक यूनिक आईडेंटिफायर होता है तथा यूआरएल का फुल फॉर्म यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर होता है।
DNS की सहायता से ब्राउज़र में उपस्थित युवा रेल को ip-address में परिवर्तित किया जाता है ताकि उस server पर पहुंचा जा सके जहां पर सूचना संग्रहित हो।
यूआरएल कई प्रकार के होते हैं लेकिन मुख्यता यूआरएल को तीन भागों में विभाजित किया गया है प्रोटोकॉल, डोमेन नेम, और पथ
वैसे तो यूआरएल में कोई स्पेस नहीं होता लेकिन स्पेस के स्थान पर Alphanumeric Character का इस्तेमाल किया जाता है ताकि यूआरएल को पहचाना जा सके।
यूआरएल में बहुत सारे सबस्ट्रिंग्स होने के कारण इसका आकार लंबा हो जाता है जिससे साझा करने में परेशानी होती है यही कारण है कि यूआरएल को शार्ट किया जाता है।
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