ट्रांसफार्मर क्या है?
ट्रांसफार्मर एक इलेक्ट्रिक डिवाइस होता है जो विद्युत के माध्यम से चलता है। यह इलेक्ट्रिक एनर्जी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने का कार्य करता है। जब Electrical Circuit Source की Electrical Power को Receive करता है, तो उसे Primary Winding कहते हैं तथा दूसरी सर्किट जो इलेक्ट्रिक एनर्जी को डिलीवर करता है उस लोड को Secondary Winding कहते हैं।
AC Supply की Frequency को बिना बदले, उसे कम या ज्यादा करने के लिए इसका इस्तेमाल होता हैं। इनका इस्तेमाल DC मशीन में भी किया जाता है, जो AC Supply द्वारा चलाए जाते हैं। DC उपकरण, AC उपकरण के मुकाबले बहुत ही कम बिजली में चल सकते हैं।
जब कोई ऑडियो एंपलीफायर 12 वोल्ट DC से काम करता है जो ट्रांसफॉर्मर का इस्तेमाल करके इसे पहले AC वोल्ट को 220 वोल्ट से 12 वोल्ट में बदला जाता है और फिर रेक्टिफायर के मदद से AC से DC में बदला जाता है। इस तरह से ट्रांसफॉर्मर का इस्तेमाल किया जाता है।
इसका इस्तेमाल बड़े दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहा है। आज हम ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल बड़े स्टेशन से लेकर एक छोटे से घर में भी करते हैं। इनका आकार भी लोगों की आवश्यकता अनुसार बदलते रहा है ताकि इसके रखरखाव में किसी प्रकार की समस्या उत्पन्न ना हो।

ट्रांसफार्मर का आविष्कार कब हुआ और किसने किया?
बिजली से संबंधित आविष्कारों में ट्रांसफार्मर का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यदि ट्रांसफार्मर नहीं होता तो बहुत से बिजली से चलने वाले उपकरण खराब हो जाते हैं। इलेक्ट्रिकल ट्रांसफॉर्मर का आविष्कार माइकल फैराडे ने 1831 में ब्रिटेन में किया था। इस तरह से ब्रिटेन ने ट्रांसफॉर्मर से संबंधित जानकारी लोगों तक पहुंचाई।
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ट्रांसफॉर्मर के प्रकार – Types Of Transformer in Hindi
ट्रांसफार्मर को कई प्रकार में बांटा गया है। इन्हें इनके इस्तेमाल तथा आकार के आधार पर भी बांटा गया है हम आपको इसके विभिन्न आधारों के अनुसार प्रकारों वर्गीकृत किया गया है जो इस प्रकार है:-
A. कोर की संरचना के आधार पर
1. शेल टाइप ट्रांसफॉर्मर
यह अंग्रेजी के वर्णमाला के अक्षर E तथा I आकार की पत्तियों को जोड़कर बनाया जाता है। इसमें तीन लिब लगे होते हैं, एक लिब पर दो वाइंडिंग की जाती है तथा बीच वाले लिब पर वाइंडिंग की जाती है जिसका क्षेत्र दोनों साइड वालों से दुगुना होता है। कम वोल्टेज वाली वाइंडिंग कोर के नजदीक की जाती है और ज्यादा वाली वाइंडिंग कम वोल्टेज वाली वाइंडिंग के ऊपर की जाती है। इसमें मैग्नेटिक फ्लक्स के दो रास्ते होते हैं इसका इस्तेमाल कम वोल्टेज वाले मशीनों को चलाने में करते हैं।
2. कोर टाइप ट्रांसफॉर्मर
इस ट्रांसफॉर्मर का आकार L टाइप का होता है जो सिलिकॉन स्टील की पत्तियों को इंसुलेट करके जोड़कर बनाया जाता है। इसमें 4 लिब होते हैं दो लिब आमने सामने लगे होते हैं और इसमें मैग्नेटिक फ्लक्स के लिए केवल एक ही रास्ता होता है। इसका इस्तेमाल हाई वोल्टेज के लिए किया जाता है।
B. आउटपुट वोल्टेज के आधार पर
1. स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर
यह इनपुट वोल्टेज को बढ़ाकर अधिक आउटपुट वोल्टेज प्रदान करता है। इसमें प्राइमरी वाइंडिंग के मुकाबले सेकेंडरी वाइंडिंग पर ज्यादा क्वाइल के लपेटे होते हैं। इसका इस्तेमाल स्टेबलाइजर, इनवर्टर आदि में किया जाता है। इसका उपयोग पावर प्लांट में grid के साथ कनेक्ट करने के लिए किया जाता है
2. स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर
इसके अंतर्गत इनपुट वोल्टेज को घटाकर कम आउटपुट वोल्टेज दिया जाता है। यह DC सप्लाई से चलने वावा हैं, बहुत से उपकरणों में लगाया जाता है क्योंकि यह AC को DC में कन्वर्ट करके विद्युत मशीनों तक DC इलेक्ट्रिसिटी को सप्लाई करता है इसीलिए सबसे ज्यादा लोग उसी का इस्तेमाल करते हैं।
C. विद्युत फेज के संख्या के आधार पर
1. सिंगल फेज ट्रांसफॉर्मर
यह ट्रांसफार्मर AC Supply पर कार्य करने वाला ट्रांसफार्मर होता है इसमें सिंगल फेज के वोल्टेज को कम या ज्यादा किया जा सकता है। इसमें दो वाइंडिंग होती है प्राथमिक तथा द्वितीयक वाइंडिंग।
प्राथमिक वाइंडिंग में सिंगल फेज विद्युत सप्लाई की जाती है और दूसरी वाइंडिंग में सिंगल फेज विद्युत सप्लाई स्टेप डाउन या स्टेप अप के रूप में की जाती है।
2. थ्री फेज ट्रांसफॉर्मर
इसमें 3 प्राथमिक तथा 3 द्वितीय वाइंडिंग होती है। इनका उपयोग 66, 110, 440 के KVA स्टेप अप करके ट्रांसफर करने के लिए किया जाता है। जहां पर डिस्ट्रीब्यूशन प्रणाली होती है, वहां पर थ्री फेज ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किया जाता है। आजकल थ्री फेज ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल बहुत ही आम बात हो गई है।
D. Core Medium के आधार पर
1. Air Core Transformer
इसमें दोनों तरह के प्राइमरी और सेकेंडरी बाइंडिंग को लगाया जाता है। इसमें iron-core की तुलना में जनरेट होने वाला फ्लेक्स बहुत ज्यादा होता है।
2. Iron Core Transformer
इसमें भी प्राइमरी तथा सेकेंडरी बाइंडिंग को लगाया जाता है परंतु इसमें बहुत सारी आयरन की पट्टी लगाई जाती है जिससे एक Perfect Linkage पैदा होता है। इसकी कार्यक्षमता कोर टाइप ट्रांसफॉर्मर से कहीं अधिक होती है। ट्रांसफार्मर के कार्य करने का सिद्धांत यह म्यूच्यूअल इंडक्शन के सिद्धांत पर कार्य करता है।
इसमें दो वाइंडिंग होती है। एक वाइंडिंग इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फोर्स का कार्य करती है तथा दूसरी वाइंडिंग मैग्नेटिक फील्ड का कार्य करती है। जब पहले वाइंडिंग में एसी सप्लाई की जाती है तो उसके चारों तरफ एक चुंबकीय क्षेत्र या मैग्नेटिक फील्ड बन जाता है, जिसे हम इलेक्ट्रो मोटिव फोर्स कहते हैं।
इसके बाद दूसरी वाइंडिंग मैग्नेटिक फील्ड के अंदर आती है तो इसमें इलेक्ट्रॉन की गतिविधि चालू हो जाती है और Coil के एक सिरे में हमें AC सप्लाई मिल जाती है। लेकिन ट्रांसफार्मर की आउटपुट सप्लाई इसकी इनपुट सप्लाई के ऊपर निर्भर करती है, इस तरह से ट्रांसफार्मर कार्य करता है।
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ट्रांसफॉर्मर कैसे काम करता है?
ट्रांसफार्मर एक ऐसा मशीन हैं जिसके करेंट को AC से DC में बदलने के लिए उपयोग किया जाता हैं। ट्रांसफार में जब AC करेंट को सप्लाई किया जाता हैं तब ट्रांसफार्मर AC करेंट के फ्रीक्वेंसी को बदले बिना उस AC करेंट को आवश्यकता अनुसार कम या ज्यादा कर सकता है। जैसा कि हम जानते हैं DC उपकरणों को चलाने के लिए DC करेंट की जरूरत होती हैं। लेकिन जब DC उपकरण को AC करेंट द्वारा चलाया जाता है तब उस समय उस उपकरण को चलाने के लिए ट्रांसफॉर्म का उपयोग किया जाता है।
ट्रांसफार्मर का उपयोग करके सबसे पहले ज्यादा Volt वाले AC करेंट को 220 Volt से 12 Volt में बदला जाता है। Volt को कम करने के बाद उस करेंट को फिर रेक्टिफायर का इस्तेमाल करके AC करेंट से DC करेंट में बदला जाता है। जिसके बाद उसका उपयोग आसानी से DC उपकरण को चलाने में किया जाता हैं। AC करेंट के सप्लाई द्वारा चलने वाले उपकरण हैं – एंपलीफायर, बैटरी चार्जर इत्यादि। DC उपकरण को चलाने के लिए AC उपकरणों के मुकाबले कम बिजली की जरूरत होती हैं। DC करेंट से चलने वाले उपकरण हैं – ऑडियो एंपलीफायर इसे चलाने के लिए 12 Volt से भी कम DC करेंट की जरूरत होती है।
ट्रांसफार्मर के भाग?
Input Connection
इसे Primary Side भी कहा जाता है क्योंकि इसमें इलेक्ट्रिकल पावर इसी पॉइंट से जुड़ा होता है।
Output Connection
इसे सेकेंडरी साइट कहा जाता है क्योंकि जहां पर इलेक्ट्रिकल पावर भेजा जाता है उससे Load की जरूरत के हिसाब से Incoming इलेक्ट्रिक पावर को बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
Winding
ट्रांसफार्मर की दो Winding होती है Primary Winding तथा दूसरी Secondary Windingप्राथमिक वाइंडिंग जिस बाइंडिंग पर इनपुट सप्लाई की जाती है जिस से प्राथमिक वाइंडिंग कहते हैं तथा जिस वाइंडिंग पर आउटपुट के तार लगाए जाते हैं और इसी बाइंडिंग से ट्रांसफार्मर को आउट पुट मिलता है उसे सेकेंडरी वाइंडिंग करते हैं।
Core
इसका इस्तेमाल Control Path के रूप में किया जाता है, मैग्नेटिक फ्लक्स को जनरेट करने के काम आता है। ट्रांसफॉर्म को Core Form और Shelle Form में बनाया जाता है जिस ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग को कोर के चारों तरफ लगाया जाता है उसे कोर्स फॉर्म कहते हैं तथा जिस ट्रांसफार्मर में कोर को वाइंडिंग के चारों तरफ लगाया जाता है उसे उसे Shelle Form कहते हैं।
इसके कोर को सिलिकॉन स्टील की पत्तियों के द्वारा बनाया जाता है इन पत्तियों की चौड़ाई 0.35 mm से 0.75 mm के बीच होती है इन पत्तियों को आपस में वार्निश के मदद से जोड़ा जाता है ट्रांसफार्मर इन पत्तियों को मुख्यतः अंग्रेजी वर्णमाला के I, L, E आदि के आकार में काट कर लगाया जाता है।
Coil
इसकी Coil ट्रांसफार्मर के इनपुट और आउटपुट तारों के साथ जोड़ा जाता है, जो इनपुट और आउटपुट का कार्य करती है। दोनों को मिलाकर रखने वाले तारों को Coil कहते हैं।
Oil Level Indicator
इसके अंतर्गत कनवर्टर टैंक में ऑयल भरा जाता है, लेकिन इसे मापने के लिए 1 मीटर Fit किया जाता है जोकि टैंक में भरे जाने वाले ऑयल की मात्रा को सुनिश्चित करता है। इसे टैंक के ऊपर ही लगाया जाता है इसे ऑयल लेवल इंडिकेटर कहते हैं।
Insulated Sheet
यह ट्रांसफार्मर की महत्वपूर्ण सीट होती है। इसे प्रायमरी वाइंडिंग और सेकेंडरी वाइंडिंग के बीच में लगाया जाता है ताकि किसी प्रकार का कोई भी शॉर्ट सर्किट उत्पन्न ना हो। इससे वाइंडिंग पर किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता है। इसके बिना ट्रांसफार्मर को लंबे समय तक चला पाना बहुत ही मुश्किल होता है।
Conservator Tank
जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि ट्रांसफार्मर के भी बहुत से प्रकार होते हैं उन्हीं के आधार पर अलग-अलग कंपोनेंट लगाए जाते हैं। कंजरवेटर टैंक थ्री फेज ट्रांसफार्मर में लगाया जाता है। इसके अंदर तेल डाला जाता है। इसका यह कार्य होता है कि यह ट्रांसफार्मर को ठंडा रखें, जिससे ट्रांसफार्मर के अंदर होने वाली गर्मी को नियंत्रित रख सके। यह थ्री फेज ट्रांसफार्मर का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग होता है।
Oil Filling Pipe
ट्रांसफार्मर के अंदर एक ऑयल टैंक होता है जिसमें तेल भरने के लिए एक पाइप लगाया जाता है। इसी पाइप के माध्यम से टैंक में तेल भरा जाता है परंतु यह केवल बड़े ट्रांसफार्मर में ही लगाया जाता है इस ऑयल का काम ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने का होता है।
Radiator Fan
ट्रांसफार्मर का लंबे समय तक इस्तेमाल करने से वह गर्म हो जाता है जिससे कि प्राइमरी तथा सेकेंडरी वाइंडिंग में नुकसान होने के चांसेस रहते हैं, इसीलिए इसमें एक रेडिएटर फैन भी लगाया जाता है। जिसका कार्य ट्रांसफार्मर को ठंडा करने का होता है। जैसे गाड़ियों में भी इंजन को ठंडा रखने के लिए रेडिएटर का इस्तेमाल किया जाता है उसी तरह ट्रांसफार्मर में भी एक रेडिएटर लगाया जाता है।
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ट्रांसफार्मर का महत्व?
आजकल ट्रांसफार्मर का महत्व बढ़ते ही जा रहा है। लगभग सभी Sector में इसका इस्तेमाल हो रहा है। इलेक्ट्रिक एनर्जी की Distribution, Generation, Transmission, और उसकी Utilization के अनुसार ट्रांसफार्मर का निर्माण हो रहा है। ट्रांसफॉर्म के वजह से पावर और डिसटीब्यूशन की कार्य क्षमता लगभग 95% ज्यादा हो गई है।
इससे बड़े आसानी से इलेक्ट्रिसिटी Transit किया जा सकता है। इससे वोल्टेज लेवल को भी Up या Down किया जा सकता है। यह पूर्ण इनपुट कनेक्शन पर निर्भर करता है। यदि हम AC सिस्टम की बात करें तो इसमें ट्रांसफार्मर लगा होता है जोकि इसकी गुणवत्ता को बढ़ा देता है।
आकार के अनुसार भी ट्रांसफार्मर का अलग अलग महत्व होता है क्योंकि इनके आकार पर भी कार्य क्षमता निर्भर करती है। बड़े आकार के ट्रांसफार्मर सबसे ज्यादा उपयुक्त होते हैं क्योंकि इनमें हाई वोल्टेज पावर सप्लाई करने की क्षमता होती है। यदि कोई ट्रांसफार्मर छोटे आकार का है तो उसे बड़े आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जाया जा सकता है परंतु छोटा साइज होने के वजह से उनमें कार्य करने की क्षमता लगभग 50 से 70% तक हो जाती है।
ट्रांसफार्मर को Static Device क्यों कहते हैं?
ट्रांसफार्मर मीनिंग इलेक्ट्रिक एनर्जी को एक सर्किट से दूसरे सर्किट में ट्रांसफर करने के लिए किसी भी अतिरिक्त भाग की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा पॉसिबल एफिशिएंसी होती है, इसीलिए इसे static device कहते हैं। इसमें बाकी अन्य इलेक्ट्रिकल मशीन के मुकाबले कार्य क्षमता 99% तक होती है।
ट्रांसफार्मर के कार्य? – Work of Transformer in Hindi
● इसका सबसे अच्छा कार्य यह है कि वोल्टेज लेवल को कम या ज्यादा करने के लिए किया जाता है।
● यह एक सर्किट से दूसरे सर्किट में जहां पर हमें वोल्टेज लेवल में बढ़ाना है या कम करना है हम बड़े आसानी से कर सकते हैं।
● जहां पर बिजली डिस्ट्रीब्यूशन किया जाता है वहां पर थ्री फेस ट्रांसफॉर्म का इस्तेमाल किया जाता है, इसका सबसे ज्यादा उपयोग इसी में होता है।
● इसका इस्तेमाल सर्किट को दूसरे से Isolate करने के लिए भी किया जाता है, इन ट्रांसफॉर्मर को आइसोलेशन ट्रांसफॉर्मर कहते हैं।
● इनका कार्य Primary Winding तथा Secondary Winding की लपेटे के समान होती है इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फील्ड को मेंटेन करने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न;
दूसरे मशीनों के तरह ट्रांसफॉर्मर में भी एक पेट्रोलियम तेल का इस्तेमाल किया जाता हैं। लेकिन यह गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाले पेट्रोल से अलग होता हैं। क्योंकि ट्रांसफॉर्मर में जिस तेल का यूज किया जाता हैं वह गर्मी का सुचालक और बिजली क कुचालक होता है। इस तेल का उपयोग खास करके ट्रांसफॉर्मर में किया जाता है, इसलिए इस फॉर ट्रांसफॉर्मर ऑयल के नाम से भी जाना जाता है। इस तेल में जल्दी आग नहीं लगता है। ट्रांसफॉर्मर ऑयल दो तरह के होते हैं – नेफ्था बेस्ड और पैराफिन बेस्ड।
अपचाई ट्रांसफार्मर में जब AC धारा को प्रवाहित किया जाता है तब अपचाई ट्रांसफॉर्मर में सबसे पहले विद्युत धारा की volt घटती है और volt घटने के बाद समान्तर धारा बढ़ती है।
ट्रांसफार्मर की दक्षता बहुत अधिक होती है। इसकी दक्षता हमेशा 90-98% के बीच होती है। ट्रांसफॉर्म की दक्षता हमेशा 0 से 100% के बीच में ही रहती है और काम करती है। लेकिन इसकी दक्षता कभी भी 1% या 100% नहीं हो सकती है।
जब ट्रांसफार्मर में AC करेंट को DC में बदलने के लिए उपयोग किया जाता हैं तब विद्युत धारा के प्रवाह के समय ट्रांसफार्मर धीरे-धीरे गर्म होने लगता है क्योंकि विद्युत धारा के प्रवाह के समय कुछ विद्युत धारा की हानि होती हैं और यह धारा ही ट्रांसफॉर्म को गर्म कर देता हैं। इसलिए गर्म ट्रांसफार्मर को ठंडा करने के लिए उसमें ट्रांसफार्मर तेल या रेडिएटर का उपयोग किया जाता है।
वह ट्रांसफॉर्मर जो इनपुट वोल्टेज को बढ़ाकर आउटपुट में ज्यादा वोल्टेज प्रदान करता है उसे स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर कहते हैं। इस तरह के ट्रांसफार्मर के पहले वाइंडिंग में दूसरे वाइंडिंग के मुकाबले coil के turn और लपेटे कम होते हैं। यानि स्टेप अप ट्रांसफार्मर के पहले वाइंडिंग में दूसरे वाइंडिंग से कम काम होता हैं। स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर का उपयोग स्टेबलाइजर, इनवर्टर इत्यादि में किया जाता है।
वह ट्रांसफार्मर जो इनपुट विद्युत धारा के वोल्टेज को घटाने के बाद उसे कम आउटपुट वोल्टेज में परिवर्तित कर देता है, उसे स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर के नाम से जाना जाता हैं। इस तरह के ट्रांसफार्मर का उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। घर में मौजूद DC उपकरण को AC current के मदद से चलाने के लिए इस तरह ट्रांसफार्मर को उपयोग में लाया जाता है। स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर घर में मौजूद हाई volt के AC current को कम volt वाले DC करेंट में बदलता हैं जिससे की उपकरण सही से चल सके। इस ट्रांसफॉर्म का मुख्य काम AC को DC में बदलना हैं।
इस तरह के ट्रांसफार्मर का उपयोग सिंगल फेज करेंट में किया जाता है। यह ट्रांसफार्मर सिंगल फेज करेंट की वोल्टेज को कम या ज्यादा करता हैं। इस ट्रांसफार्मर में भी दूसरे ट्रांसफार्मर की तरह दो वाइंडिंग होती है। ट्रांसफार्मर के पहले वाइंडिंग में विद्युत धारा का प्रवाह किया जाता है और ट्रांसफार्मर की दूसरी वाइंडिंग से विद्युत धारा के आउटपुट रिजल्ट को प्राप्त किया जाता हैं। ट्रांसफार्मर के दूसरी वाइंडिंग से AC करेंट के स्टेप डाउन या स्टेप अप में परिवर्तित विद्युत धारा को प्राप्त किया जाते हैं।
वह ट्रांसफॉमर्स जो 3 फेज AC करेंट सप्लाई करने वाले फेज में उपयोग में लाया जाता है उसे थ्री फेज ट्रांसफार्मर कहते हैं। इस तरह के ट्रांसफार्मर में तीन प्राथमिक वाइंडिंग होती है और तीन द्वितीयक वाइंडिंग होती हैं। इस तरह के ट्रांसफार्मर का उपयोग विद्युत धारा को स्टेप अप करने के लिए किया जाता है। इस समय के ट्रांसफार्मर में जो विद्युत धारा प्रवाहित होती है वह 3 फेज से होती हैं। आजकल हर जगह थ्री फेज ट्रांसफार्मर को उपयोग में लाया जाता हैं।
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