MS-DOS क्या है?
एमएस डॉस (MS-DOS) एक ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसको माइक्रोसॉफ़्ट ने बनाया है। यह एक Character User Interface (CUI) ऑपरेटिंग सिस्टम है जो की x86-based Personal Computers के लिए बनाया गया है।
यह ऑपरेटिंग सिस्टम पूरी तरह से यूजर पर डिपेंड होकर अपना वर्क करता है, क्योंकि इस पर काम करने के जो भी आदेश दिए जाते हैं वह यूजर के द्वारा कमांड के तौर पर दिए जाते हैं और उसके पश्चात हमें रिजल्ट के तौर पर आउटपुट शब्द के प्रारूप में प्राप्त होता है। MS-DOS का फुल फॉर्म Microsoft Disk Operating System होता है।
ऐसे कंप्यूटर जो एमएस डॉस ऑपरेटिंग सिस्टम पर चलते हैं उस पर काम करना थोड़ी सा मुश्किल होता है क्योंकि हमें काम करने के लिए हर बार कमांड देने की आवश्यकता होती है। इसलिए यूजर को विभिन्न प्रकार के अधिक से अधिक कमांड को याद रखने की जरूरत होती है।

MS-DOS कैसे काम करता है?
ऊपर आपने जाना है कि इसमें कोई भी काम कमांड के द्वारा ही संपूर्ण होता है। उदाहरण के तौर पर अगर हमें विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम में किसी फोल्डर का निर्माण करना है, तो हम डायरेक्ट न्यू फोल्डर पर क्लिक करेंगे, ऐसा करने से नया फोल्डर बन करके तैयार हो जाएगा, परंतु यह प्रक्रिया हम एमएस डॉस में नहीं कर सकते हैं।
हमें यहां पर नया फोल्डर क्रिएट करने के लिए इसे कमांड देना होगा। इसके लिए हमें एमडी स्पेस और फोल्डर का नाम लिखने के बाद इंटर बटन को प्रेस करने की आवश्यकता होगी।
इस प्रकार से कमांड प्राप्त करने के बाद नया फोल्डर बनाया जाएगा। इसी प्रकार से और भी कमांड होते हैं जिन्हें देने पर आप अपने कामों को कर सकते हैं।
MS-DOS कमांड के प्रकार?
डॉस कमांड के दो प्रकार होते हैं। इंटरनल कमांड और एक्सटर्नल कमांड।
1: इंटरनल कमांड
डोस की जो मुख्य प्रोग्राम फाइल होती है वहीं पर इंटरनल कमांड उपलब्ध होते हैं। जब आपके द्वारा कंप्यूटर को शुरू किया जाता है तब यह कमांड मेमोरी में लोडिंग लेना चालू कर देते हैं।
हालांकि आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह कमांड किसी भी फाइल के प्रारूप में नहीं होते हैं, बल्कि यह स्पेशल शब्द के तौर पर अवेलेबल होते हैं और इन्हें किसी पर्टिकुलर टास्क को चालू करवाने के लिए चलाया जाता है। MD, CD, TIME, DATE, COPY, COPY CON, TYPE ETC. इंटरनल कमांड के इत्यादि बेहतरीन उदाहरण है।
2: एक्सटर्नल कमांड
इस प्रकार की फाइल डिस्क पर अवेलेबल रहती है। यह ऐसी फाइल में होते हैं जिसमें .COM, .EXE, या .BAT जैसे एक्सटेंशन लगे हुए होते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आपके सिस्टम के अंदर कोई फाइल abc.exe के नाम से मौजूद है।
अर्थात आपने उसे पहले ही सिस्टम में सुरक्षित किया हुआ है तो इस कमांड को रन कराने से वह फाइल ओपन होगी परंतु उस नाम की कोई भी फाइल आपके सिस्टम में मौजूद नहीं है तो ऐसी अवस्था में आपको एरर दिखाई देगा।
MS-DOS के कमांड
जब तक आप को एमएस डॉस के कमांड के बारे में सही जानकारी नहीं होगी तब तक आप इसका इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। इसलिए आपकी सहूलियत के लिए नीचे हमने कुछ कमांड के उदाहरण भी प्रस्तुत किए हुए हैं।
1: systeminfo
अगर आपको अपने सिस्टम की जानकारियों को देखना है या फिर प्राप्त करना है तो आपको इस वाले एमएस कमांड का इस्तेमाल करना चाहिए।
2: cls
अगर आप विंडो को क्लियर करना चाहते हैं तो आपको इस वाले कमांड का इस्तेमाल करना चाहिए।
3: dir
अगर आप वर्तमान की डायरेक्टरी की कंटेंट लिस्ट को अपने स्क्रीन पर देखना चाहते हैं तो आपको इस वाले कमांड का इस्तेमाल करना चाहिए।
4: notepad
विंडो में नोटपैड ओपन करने के लिए आपको इस वाले कमांड का इस्तेमाल करना चाहिए।
5: exit
अगर आप डोस से बाहर आना चाहते हैं तो आपको इस वाले कमांड का इस्तेमाल करना चाहिए। एग्जिट का मतलब हिंदी भाषा में बाहर निकलना होता है।
6: lynx
ऐसे वेब ब्राउज़र जो शब्दों पर आधारित होते हैं उनके लिए इसका इस्तेमाल होता है।
7: netsh
आप नेटवर्क सर्विस सेल के लिए इसका यूज कर सकते हैं।
MS-DOS के वर्जन
नीचे आपको एमएस डॉस के वर्जन, उनकी लॉन्चिंग के साल और उनके बारे में संक्षेप में जानकारी दी गई है।
1: Microsoft PC-DOS 1.0
इसे साल 1981 में लांच किया गया था और इसे मुख्य तौर पर आईबीएम पीसी पर चलाने के लिए डिजाइन किया गया था।
2: MS-DOS 1.25
इसका नाम साल 1982 में एमएस डॉस रखा गया था, क्योंकि साल 1982 में इसे लांच किया गया था जो कि ऑपरेटिंग सिस्टम का पहला वर्जन था।
3: MS-DOS 3.0
साल 1984 में अगस्त के महीने में इसकी लॉन्चिंग आइबीएम पीसी एटी के लिए की गई थी।
4: MS-DOS 3.1
एमएस डॉस के इस वर्जन को एमएस डॉस फॉर नेटवर्क के लिए साल 1985 के अप्रैल के महीने में लॉन्च किया गया था। यह एमएस डॉस के द्वारा लांच किया गया पहला ऐसा वर्जन था जिसके द्वारा लोकल एरिया नेटवर्क को सपोर्ट किया जाता था।
5: MS-DOS 3.2
इस वर्जन को साल 1986 में अप्रैल के महीने में लांच किया गया था। इसके द्वारा फ्लॉपी डिस्क ड्राइव के 3 1/2 इंच, 720 KB को सपोर्ट किया जाता था।
6: MS-DOS 3.31
इसे साल 1987 में नवंबर के महीने में कॉन्पैक्ट कंप्यूटर के लिए डिजाइन किया गया था।
7: MS-DOS 4.01
साल 1988 में नवंबर के महीने में इसे लॉन्च किया गया था। इसके द्वारा वॉल्यूम सीरियल नंबर को सपोर्ट किया जाता था।
8: MS-DOS 5.0
इसकी लॉन्चिंग साल 1991 में जून के महीने में की गई थी। बता दें कि इसकी खासियत यह थी कि इसके द्वारा 3.5 इंच 2.88 एमबी फ्लॉपी डिस्क तथा फुल स्क्रीन टेक्स्ट एडिटर को सपोर्ट किया जाता था।
9: MS-DOS 6.0
MS-DOS 6.0 को साल 1993 में अगस्त के महीने में प्रस्तुत किया गया था। MS-DOS 6.0 डिस्क कंप्रेशन, क्यू बेसिक, यू एम ए ऑप्टिमाइजेशन तथा एंटीवायरस सॉफ्टवेयर की विशेषताओं से लैस था।
10: MS-DOS 6.22
साल 1994 के अप्रैल के महीने में इसकी लॉन्चिंग की गई थी। इसमें कंप्रेशन यूटिलिटी और डीआरबी स्पेस शामिल था।
11: MS-DOS 7.0.24
1995 में अगस्त के महीने में इसे लॉन्च किया गया था।
MS-DOS के फायदे?
एमएस डॉस के फायदे निम्नानुसार है।
- ऐसे सिस्टम जिनकी कैपेसिटी कम होती है या फिर छोटी होती है उनमें भी आसानी से एमएस डॉस ऑपरेटिंग सिस्टम काम करता है।
- एमएस डॉस में सरलता के साथ बॉयोस को एक्सेस कर सकते हैं।
- इसमें यूजर को प्रक्रिया को डायरेक्ट कंट्रोल करने की सुविधा भी प्राप्त होती है।
- एमएस डॉस का आकार काफी कम ही होता है। इसलिए दूसरे विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम की कंपैरिजन में काफी तेजी के साथ एमएस डॉस बूट करने की कार्यवाही करता है।
- एमएस डॉस में स्पेशल परपज प्रोग्राम को लिखना बहुत ही सरल होता है फिर चाहे प्रोग्राम कितना भी लंबा क्यों ना हो।
- एमएस डॉस का वजन काफी कम होता है। इसीलिए यह हार्डवेयर तक डायरेक्ट एक्सेस प्रदान करता है।
- एमएस डॉस में मल्टी टास्किंग नहीं हो पाती है क्योंकि यह सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम होता है। इसलिए इसमें ओवरहेड भी नहीं होता है।
MS-DOS के नुकसान?
एमएस डॉस के नुकसान निम्नानुसार है।
- एमएस डॉस के द्वारा मल्टीटास्किंग को सपोर्ट नहीं किया जाता है। इसीलिए अगर कोई यूजर एक साथ अलग-अलग कामों को करना चाहता है तो ऐसा करना इसमें पॉसिबल नहीं है।
- एमएस डॉस में आप एक साथ अलग-अलग एप्लीकेशन पर काम नहीं कर सकते हैं। एक समय में एक ही एप्लीकेशन पर आपके द्वारा काम किया जाएगा।
- ऐसी कंडीशन जब 640 एमबी के ऊपर वाली मेमोरी को एड्रेस करने की आवश्यकता होती है तो एमएस डॉस में मेमोरी को एक्सेस करना थोड़ा सा मुश्किल हो जाता है।
- इसमें हार्डवेयर में जब भी कोई भी interruption होता है तो ऐसी अवस्था में खुद ही उसे मैनेज करना पड़ता है।
MS-DOS के आविष्कारक कौन है?
अमेरिका में पैदा हुए और प्रोग्रामर टीम पीटरसन के द्वारा एमएस डॉसका आविष्कार किया गया था। जब इसकी खोज की गई थी तब टीम पीटरसन के द्वारा इसका नाम 86- डॉस रखा गया था।
हालांकि समय बढ़ने के पश्चात इसकी खरीदारी माइक्रोसॉफ्ट के द्वारा कर ली गई और इसके नाम में बदलाव करते हुए इसका नाम MS-DOS 1.0 रख दिया गया और तब से लेकर आज तक दुनिया इसी नाम से इसे जानती पहचानती है।
MS-DOS का इतिहास (History of MS-DOS in Hindi)
Seattle Computer Product नाम की एक कंपनी साल 1979 में थी, जिसके पास अपना खुद का ऑपरेटिंग सिस्टम ODOS था। हालांकि आगे चलकर के आईबीएम कंपनी के द्वारा इसकी खरीदी कर ली गई।
इसकी खरीदी करने के पश्चात आईबीएम कंपनी के द्वारा इस पर बेहतरीन काम करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट के साथ समझौता किया गया और फिर दोनों कंपनी ने एक साथ मिलकर के अपने पर्सनल कंप्यूटर के लिए साल 1981 में एक नए प्रोडक्ट की लॉन्चिंग की, जिसका नाम एमएस डॉस वर्जन 1.0 रखा।
इसमें दोनों कंपनी के द्वारा कुछ सुधार किए गए और फिर साल 1983 में इसके एक नए वर्जन को लांच किया जिसका नाम एमएस डॉस वर्जन 2.0 रखा। आगे बढ़ते हुए दोनों कंपनी के द्वारा एमएस डॉस वर्जन 7 तक काम किया गया जिसमें हमें ग्राफिकल यूजर इंटरफेस दिखाई देता है। हालांकि साल 1991 में दोनों कंपनी अलग हो गई।
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