ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है? परिभाषा, प्रकार, कार्य (Operating System in Hindi)

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ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है? क्या आप इस बात से अवगत है कि जब आप कंप्यूटर अथवा डेस्कटॉप या फिर लैपटॉप या फिर मोबाइल को पावर ऑन करते हैं तो उसमें सबसे पहले कौन सी चीज लोड होती है। हमें पता है कि निश्चित ही आपको इसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं होगी। बता दे कि सबसे पहले लोड होने वाली चीज ऑपरेटिंग सिस्टम होती है जिसे संक्षेप में ओएस कहा जाता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है

ऑपरेटिंग सिस्टम आपके मोबाइल में भी मौजूद होता है और कंप्यूटर, लैपटाप तथा डेस्कटॉप में भी मजबूत होता है। इसे आप को डालने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि हर डिवाइस में यह पहले से ही इनबिल्ट हो करके आता है।


ऑपरेटिंग सिस्टम हमारे कंप्यूटर के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है और ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा कौन-कौन से कामों को अंजाम दिया जाता है। इनके बारे में अवश्य ही आपको इंफॉर्मेशन होनी चाहिए। आइए इस पेज पर जानते हैं कि “ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है” और “ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार कितने हैं।”

अनुक्रम

ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है? (What is Operating System in Hindi)

OS का फुल फॉर्म अंग्रेजी भाषा में OPERATING SYSTEM होता है और ऑपरेटिंग सिस्टम को हिंदी में प्रचालन तंत्र कहा जाता है। किसी भी कंप्यूटर में अथवा डेस्कटॉप या फिर लैपटॉप में ऑपरेटिंग सिस्टम उपलब्ध होना बहुत ही आवश्यक होता है क्योंकि ऑपरेटिंग सिस्टम ही वह चीज है जिसके द्वारा कंप्यूटर के हार्डवेयर के साथ ही साथ कंप्यूटर से संबंधित दूसरे सॉफ्टवेयर को संचालित करने का काम किया जाता है।


यह बात आप भली-भांति जानते हैं कि कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर का निर्माण करने के लिए प्रोग्रामिंग लैंग्वेज का इस्तेमाल किया जाता है परंतु इसके बावजूद कंप्यूटर प्रोग्रामिंग लैंग्वेज नहीं बल्कि मशीनी लैंग्वेज को ही समझ पाता है और मशीनी लैंग्वेज में ही कंप्यूटर कम्युनिकेट करता है।

 परंतु जब हमारे द्वारा कंप्यूटर को किसी भी प्रकार का कमांड दिया जाता है तो वह कमांड मशीनी लैंग्वेज मे नहीं होता है, बल्कि अंग्रेजी, हिंदी और दूसरी किसी भाषा में होता है, परंतु फिर भी कंप्यूटर आसानी से हमारे द्वारा दिए गए कमांड को समझ लेता है और उसके बाद उस पर प्रोसेसिंग करके संबंधित रिजल्ट कंप्यूटर की स्क्रीन पर दिखाता है। यह ऑपरेटिंग सिस्टम की वजह से ही संभव हो पाता है।

कंप्यूटर के साथ कनेक्टेड HARDWARE भी ऑपरेटिंग सिस्टम की वजह से ही काम करने के लायक बन पाने में सक्षम होते हैं। इसके अलावा कंप्यूटर को पावर ऑन करने के लिए भी ऑपरेटिंग सिस्टम बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। किसी कंप्यूटर में अगर ऑपरेटिंग सिस्टम अनुपलब्ध हो तो ऐसी सिचुएशन में उस कंप्यूटर के द्वारा अपने कामों को सही प्रकार से अंजाम नहीं दिया जा सकेगा।


क्योंकि ऑपरेटिंग सिस्टम ही वह चीज है जो यूजर और कंप्यूटर के बीच एक इंटरफ़ेस की तरह काम करता है और हमारे या फिर आपके द्वारा जब कभी भी कंप्यूटर को POWER ON किया जाता है तब कंप्यूटर में सबसे पहले लोड होने वाली चीज ऑपरेटिंग सिस्टम ही होती है।

उसके पश्चात कंप्यूटर में धीरे-धीरे अन्य चीजें लोड होती है। कंप्यूटर में जितने भी ऑपरेशन चलते हैं उन्हें मैनेज करने का काम ऑपरेटिंग सिस्टम अर्थात ओ एस के द्वारा ही किया जाता है। इसलिए ऑपरेटिंग सिस्टम को PROGRAMS OF PROGRAM कहा जाता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम का अर्थ क्या होता है?

सामान्य तौर पर हमारे द्वारा KEYBOARD, MICROPHONE अथवा MOUSE के द्वारा जो इनपुट दिया जाता है उसे ऑपरेटिंग सिस्टम ग्रहण करता है और उसके पश्चात उस पर कार्रवाई करके संबंधित रिजल्ट को कंप्यूटर की स्क्रीन पर दिखाता है। इसके लिए ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा कंप्यूटर के साथ जुड़े हुए हार्डवेयर के साथ CO-ORDINATE किया जाता है।


अगर आसान भाषा में कहा जाए तो ऑपरेटिंग सिस्टम ही वह चीज है, जिसके द्वारा कंप्यूटर इस्तेमाल करने वाले यूजर और कंप्यूटर के हार्डवेयर के बीच सही प्रकार से सामंजस्य बिठाने का काम किया जाता है और कम्युनिकेशन स्थापित किया जाता है।

इसका तात्पर्य यह है कि ऑपरेटिंग सिस्टम यूजर की बात को कंप्यूटर तक पहुंचाता है और कंप्यूटर की बात को यूज़र तक पहुंचाने का काम करता है। इस प्रकार से यूजर और कंप्यूटर के बीच COMMUNICATION स्थापित करने के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम महत्वपूर्ण होता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम की परिभाषा क्या है?

ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर में मौजूद एक ऐसा सॉफ्टवेयर होता है जिसके द्वारा कंप्यूटर के साथ जुड़े हुए सभी हार्डवेयर डिवाइस और सभी सॉफ्टवेयर को संचालित करने का काम किया जाता है। बेजान हार्डवेयर में जान डालने का काम भी ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा ही किया जाता है और उस हार्डवेयर को सही प्रकार से वर्क करने के लायक बनाया जाता है‌


आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें कि ऑपरेटिंग सिस्टम ही Graphically User Interface उपलब्ध करवाने का काम करता है। ग्राफिकल यूजर इंटरफेस की वजह से ही कंप्यूटर का इस्तेमाल करने में यूजर को सरलता होती है।

क्योंकि ग्राफिकल यूजर इंटरफेस में अलग-अलग प्रकार के ऑप्शन आइकन, मीनू, बार और बटन के तौर पर दिखाई देते हैं जिसकी वजह से यूजर को कंप्यूटर को किसी भी प्रकार का कमांड देने में काफी सरलता होती है, क्योंकि यूजर को बार-बार COMMAND देने के लिए किसी भी कोड को लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है? यह जानने के बाद चलिए अब इससे जुड़ी अन्य जानकारिया देखते है।

ऑपरेटिंग सिस्टम का इतिहास (History of Operating System in Hindi)

शुरुवात में जब कंप्यूटर का निर्माण करना शुरू किया गया था तब उसमें ऑपरेटिंग सिस्टम अर्थात ओएस अवेलेबल नहीं था और इस बात को आप अच्छी तरह से जानते हैं कि कंप्यूटर को काम करने के लिए मशीन लैंग्वेज की आवश्यकता होती है।

परंतु Machine Language को याद रखना इंसानों के लिए इतना आसान नहीं था। इसलिए इन झंझट से छुटकारा पाने के लिए रिसर्च करना चालू किया गया और साल 1950 के आसपास में Basic operating system की कुछ सर्विस को डिवेलप करने पर काम किया गया और उसे डिवेलप किया गया।

इस प्रकार से लंबी खोजबीन के पश्चात साल 1956 में General Motor के द्वारा पहला ऑपरेटिंग सिस्टम IBM CENTRAL COMPUTER को ऑपरेट करने के लिए बनाया। इसके तकरीबन 3 सालों के बाद अर्थात साल 1960 के आसपास में आईबीएम ऑपरेटिंग सिस्टम को डिवेलप करने वाला पहला कंप्यूटर मैन्युफैक्चर बना और इसके द्वारा ही अपनी कंपनी के द्वारा निर्मित कंप्यूटर में ऑपरेटिंग सिस्टम को DISTRIBUTED करना स्टार्ट किया गया।

साल 1960 का अंत होते होते ही यूनिक्स के द्वारा अपना ऑपरेटिंग सिस्टम बनाया गया और उसके पहले VERSION वर्जन को लिखने के लिए कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग भाषा सी का इस्तेमाल किया गया। और अपने शुरुआत के सालों में इसे मुफ्त में डिस्ट्रीब्यूटर किया गया। इस ऑपरेटिंग सिस्टम को लोगों ने काफी बड़े पैमाने पर पसंद किया और इसीलिए इसे वर्ल्ड वाइड लेवल पर मान्यता भी मिली।

बता दे कि माइक्रोसॉफ्ट के द्वारा जो पहला ऑपरेटिंग सिस्टम बनाया गया था उसे विंडोज का नाम नहीं दिया गया बल्कि उसे एमएस डॉस कहा जाता था। इसका निर्माण साल 1981 में किया गया था। आगे बढ़ते हुए साल 1985 में पहली बार विंडोज का इस्तेमाल किया गया था और इस प्रकार से आगे के सालों में अलग-अलग कंपनियों के द्वारा अलग-अलग नामों से ऑपरेटिंग सिस्टम डिवेलप किया गया और उन्हें मार्केट में लांच किया गया।

ऑपरेटिंग सिस्टम के उदाहरण

अलग-अलग ऑपरेटिंग सिस्टम डेवलपर कंपनी के द्वारा मार्केट में अलग-अलग प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम बना करके लांच किया गया है, जिनका इस्तेमाल विभिन्न कंप्यूटर अथवा लैपटॉप या फिर डेस्कटॉप में किया जाता है। नीचे आपको कुछ लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम के उदाहरण बताए जा रहे हैं।

MICROSOFT WINDOWS

यह एक प्रकार का ऑपरेटिंग सिस्टम है जिसका निर्माण माइक्रोसॉफ्ट विंडोज कंपनी के द्वारा किया गया है। इसका बड़े पैमाने पर वर्तमान के समय में जो कंप्यूटर लांच हो रहे हैं उसमें इस्तेमाल किया जा रहा है। दुनिया में जब कभी भी पॉपुलर ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में चर्चा होती है तो उसमें MICROSOFT WINDOWS का स्थान पहला होता है।

इसे ग्राफिक यूजर इंटरफेस ऑपरेटिंग सिस्टम भी कहा जाता है। माइक्रोसॉफ्ट विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल ऑफिस, घर या फिर स्कूल में जो कंप्यूटर इस्तेमाल में लिए जाते हैं, उसमें सबसे ज्यादा होता है।

इसके पहले MS DOS नाम के एक ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता था जिसमें किसी भी चीज को करने के लिए हमें कमांड देने की आवश्यकता पड़ती थी और उसमें एक कमी यह भी थी कि माउस के द्वारा उस ऑपरेटिंग सिस्टम में कामों को संपन्न नहीं करवाया जा सकता था।

परंतु जब विंडोस को लांच किया गया तो माउस के द्वारा कंप्यूटर से काम करवाने मे काफी आसानी हुई। इसलिए एक सामान्य यूज़र के लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल करना और भी आसान हो गया जोकि एमएस डॉस होने पर नहीं था।

अभी तक के माइक्रोसॉफ्ट ऑपरेटिंग सिस्टम 

WINDOWS 1.0 (विंडोज 1.0), WINDOWS 2.0 (विंडोज 2.0), WINDOWS 3.0 (विंडोज 3.0), WINDOWS 95 (विंडोज 95), WINDOWS 4.0 (विंडोज 4.0), WINDOWS 98 (विंडोज 98), WINDOWS ME (विंडोज एम ई), WINDOWS 2000 (विंडोज 2000), WINDOWS XP (विंडोज एक्स पी), WINDOWS VISTA (विंडोज विस्टा), WINDOWS 7.0 (विंडो 7.0), WINDOWS 8.0 (विंडोज 8.0), WINDOWS 10 (विंडोज 10), WINDOW 11 (विंडोज 11) जैसे वर्जन लांच हो चुके हैं।

GOOGLE ANDROID

गूगल एंड्राइड को सिर्फ ANDROID OS ही कहा जाता है, जो कि मोबाइल के लिए बनाया गया एक बहुत ही बेहतरीन मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम है। गूगल एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम मुख्य तौर पर वर्तमान के समय में आने वाले स्मार्टफोन, टेबलेट, टच स्क्रीन मोबाइल इत्यादि के लिए डिजाइन किया गया है। इसे सिस्टम सॉफ्टवेयर भी कहा जाता है जिसके द्वारा मोबाइल में हार्डवेयर और मोबाइल के सॉफ्टवेयर के मैनेजमेंट से संबंधित कामों को देखा जाता है।

जब भी हमारे द्वारा किसी भी डिवाइस को ओन किया जाता है तो सबसे पहले जो सॉफ्टवेयर लोड होता है वहां ऑपरेटिंग सिस्टम ही होता है। जैसे कि अगर आपने अपने एंड्राइड मोबाइल को ऑन किया तो उसमें सबसे पहले एंड्राइड मोबाइल का ऑपरेटिंग सिस्टम ही लोड होना चालू होता है।

गूगल एंड्राइड की गिनती ओपन सोर्स प्लेटफॉर्म में होती है। इसका मतलब यह होता है कि कोई भी इसका इस्तेमाल बिल्कुल मुफ्त में कर सकता है। गूगल कंपनी के द्वारा एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम का निर्माण किया गया है और इसका सबसे हाल का वर्जन ANDROID 11 है जिसे साल 2020 में 8 सितंबर के दिन गूगल ने लॉन्च किया हुआ है।

एंड्राइड ओएस की स्थापना साल 2003 में किसी लोगों के द्वारा की गई थी परंतु साल 2005 में तकरीबन 50 मिलियन डॉलर जितना पैसा देकर गूगल ने इसकी खरीदारी कर ली और 2 साल बाद अर्थात साल 2007 में एचटीसी, मोटरोला, सैमसंग जैसे मोबाइल में एंड्रॉयड का इस्तेमाल ओपन हैंडसेट एलाइंस के द्वारा होने लगा।

 Apple Ios

APPLE INCORPORATION के द्वारा एप्पल आईओएस ऑपरेटिंग सिस्टम का निर्माण किया गया है। इसे मुख्य तौर पर ऐसे ही आईफोन, आईपैड और आईपॉड में इंस्टॉल किया जाता है जिसका निर्माण एप्पल कंपनी के द्वारा किया जाता है। पहले इसे आईफोन ओएस कहा जाता था, परंतु बाद में इसके नाम में बदलाव किया गया और इसे APPLE IOS कहां जाने लगा।

आईओएस का पूरा नाम आईफोन ऑपरेटिंग सिस्टम होता है। हालांकि यह ओपन सोर्स प्लेटफॉर्म नहीं है। इसीलिए इसे सुरक्षित ऑपरेटिंग सिस्टम की लिस्ट में जगह दी जाती है, क्योंकि यहां पर आपके किसी भी प्रकार के डाटा को सुरक्षा प्रदान की जाती है।

इसकी वजह यह होती है कि एप्पल के द्वारा अपने सॉफ्टवेयर और अपने हार्डवेयर को अपने आप से डिजाइन किया जाता है। इसलिए अक्सर एप्पल कंपनी के जो प्रोडक्ट होते हैं वह काफी स्टेबल होते हैं।

27 जून साल 2007 में पहली बार एप्पल का ऑपरेटिंग सिस्टम लॉन्च हुआ था जिसका नाम OS X था।  अभी तक एप्पल आईओएस ऑपरेटिंग सिस्टम के  IOS 1, IOS 2 ,IOS 3,IOS 4, IOS 5 , IOS 6 , IOS 7, IOS 8 , IOS 9, IOS 10 , IOS 11 , IOS 12 , IOS 13 , IOS 14 जैसे वर्जन लॉन्च हो चुके हैं।

 Apple Macos

इसका पूरा नाम MACINTOSH होता है और यह कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम की श्रेणी में आने वाला एक ऑपरेटिंग सिस्टम है, जिसका निर्माण एप्पल इनकॉरपोरेशन के द्वारा किया गया है। इस ऑपरेटिंग सिस्टम का निर्माण करने के लिए असेंबली लैंग्वेज जैसी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज का इस्तेमाल किया गया है।

अभी तक इसके भी कई वर्जन मार्केट में कंप्यूटर के लिए लांच किए जा चुके हैं। मैकिनटोश कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम GRAPHIC USER INTERFACE और UNIX पर भी आधारित होता है।

मैकिनटोश ऑपरेटिंग सिस्टम सिर्फ ऐसे ही कंप्यूटर पर रन करता है जिन्हें मैकिनटोश कंप्यूटर कहा जाता है। इसका पहला वर्जन एप्पल इनकॉरपोरेशन के द्वारा साल 1984 में रिलीज किया गया था। समय-समय पर इस वर्जन में आने वाली प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए इसके नए नए वर्जन को मार्केट में लाया जाता रहता है।

शुरुआती स्तर के जो मैकिनटोश कंप्यूटर होते थे उसमें मोटोरोला 68000 सीरीज के माइक्रो प्रोसेसर का यूज किया जाता था। हालांकि बाद में इसमें भी बदलाव किया गया और मोटोरोला 68000 सीरीज के माइक्रो प्रोसेसर की जगह पर पावर पीसी प्रोसेसर का इस्तेमाल किया जाने लगा।

Linux Operating System

लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम की गिनती ओपन सोर्स ऑपरेटिंग सिस्टम मे होती है। इसका सबसे अधिक इस्तेमाल लैपटॉप और कंप्यूटर जैसे डिवाइस में किया जाता है। अगर आप अपने कंप्यूटर में इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं।

तो आप सरलता से लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम को इंटरनेट से डाउनलोड कर सकते हैं और उसे अपने कंप्यूटर में इंस्टॉल कर के चला सकते हैं। पहली बार लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम को डिवेलप करने का काम साल 1991 में LINUS TORVALDS के द्वारा किया गया था।

लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रमुख डिस्ट्रीब्यूशन UBUNTU LINUX, LINUX MINT, ARCH LINUX, DEEPIN, FEDORA, OPENSUSE

है और इसके प्रमुख घटक KERNEL (कर्नेल), SYSTEM LIBRARY (सिस्टम लाइब्रेरी), SYSTEM UTILITY (सिस्टम यूटिलिटी) है।

लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम की विशेषता यह होती है कि इसे पोर्टेबल ऑपरेटिंग सिस्टम कहा जाता है। इसीलिए यह एक ही समय में एक साथ अलग-अलग हार्डवेयर पर काम करने की कैपेसिटी रखता है। इसके अलावा इसकी विशेषता MULTI USER, MULTI PROGRAMMING, OPEN SOURCE, VIRTUAL MEMORY, SECURITY भी है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार (Types of Operating System in Hindi)

ऑपरेटिंग सिस्टम की कई कैटेगरी है। इसलिए इन्हें अलग-अलग प्रकारों में डिवाइड किया गया है, जिनमें से कुछ प्रमुख प्रकारों की जानकारी आपको नीचे प्रोवाइड करवाई जा रही है।

बैच ऑपरेटिंग सिस्टम

यूजर के द्वारा बैच ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ डायरेक्ट तौर पर इंटरेक्ट करना पॉसिबल नहीं है। इसलिए अगर यूजर को किसी भी प्रकार का कमांड देने की आवश्यकता है तो इसके लिए उसे पंच कार्ड का इस्तेमाल करना पड़ता है।

बता दे कि पंच कार्ड ऑफलाइन डिवाइस की कैटेगरी में आने वाला एक डिवाइस है जो कागज जैसा एक टुकड़ा होता है। इसके अंदर छोटे-छोटे छेद अवेलेबल होते हैं और इन्हीं छेद के अंदर कामों के ग्रुप को बना करके रखा जाता है और उसके पश्चात उसे एग्जीक्यूट करने का काम किया जाता है।

ऊपर ही हमने बताया कि यूजर के द्वारा बैच ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ किसी भी प्रकार का डायरेक्ट इंटरेक्शन करना पॉसिबल नहीं है, इसलिए अगर कामों में किसी भी प्रकार की कोई गड़बड़ी आ जाती है तो इसकी वजह से काम सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं और दूसरे कामों को तब तक इंतजार करना होता है जब तक कि जो गड़बड़ी हो चुकी है वह सही ना हो जाए।

पेरोल सिस्टम, बैंक स्टेटमेंट इत्यादि बैच ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रमुख उदाहरण है। सेकंड जनरेशन कंप्यूटर में इस्तेमाल होने वाला जो पहला ऑपरेटिंग सिस्टम था, वह बैच ऑपरेटिंग सिस्टम ही था।

बैच ऑपरेटिंग सिस्टम के भी दो प्रकार होते हैं जिसमें जिस ऑपरेटिंग सिस्टम में कंप्यूटर और यूजर का आपस में कोई भी इंटरेक्शन स्थापित नहीं हो पाता है उसे SIMPLE BATCHED SYSTEM कहा जाता है, वहीं बैच ऑपरेटिंग सिस्टम का दूसरा प्रकार MULTI-PROGRAMMED BATCHED SYSTEM होता है। इस प्रकार में सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट को कामों को एग्जीक्यूट करने के लिए काफी अधिक वर्क करने की आवश्यकता होती है।

डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम

वितरित ऑपरेटिंग सिस्टम को अंग्रेजी भाषा में डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम कहते हैं। इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में किसी भी यूजर के पास अन्य बहुत सारे सिस्टम भी अवेलेबल होते हैं और उन सभी सिस्टम के अपने रिसोर्स जैसे कि सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट और मेमोरी इत्यादि होते हैं।

डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम आपस में कनेक्ट होने के लिए शेयर कम्युनिकेशन नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं। इनकी विशेषता यह होती है कि इसमें जितने भी सिस्टम अवेलेबल होते हैं, वह सभी व्यक्तिगत तौर पर अपने कामों को कंप्लीट करते हैं।

इस ऑपरेटिंग सिस्टम में  रिमोट एक्सेस भी होता है जिसका अर्थ यह होता है कि दूसरे सिस्टम के डाटा को एक्सेस करने की परमिशन यूजर को मिलती है।

वितरित ऑपरेटिंग सिस्टम के भी पांच प्रकार होते हैं जिनके नाम CLIENT SERVER SYSTEM (क्लाइंट सर्वर सिस्टम), PEER TO PEER SYSTEM (पीयर टू पीयर सिस्टम), MIDDLEWARE (मिडिलवेयर), THREE-TIER (थ्री टायर), N-TIER हैं।

वितरित ऑपरेटिंग सिस्टम के फायदे यह है कि इनके द्वारा डाटा करप्शन को कम करने में काफी सहायता प्राप्त होती है। इसके अलावा इसमें डाटा को पाने के लिए अथवा डाटा को भेजने के लिए ईमेल का इस्तेमाल होता है।

जिसकी वजह से तेज गति के साथ डाटा प्राप्त किया जा सकता है अथवा डाटा भेजा जा सकता है। इसके अलावा वितरित ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा डाटा प्रोसेसिंग का जो समय होता है उसमें भी कमी की जाती है जिसकी वजह से काफी तेज गति के साथ वर्क पूरे होते हैं।

टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम

टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम एक बेसिक प्रोग्राम होता है जिसके द्वारा यूजर और सिस्टम हार्डवेयर के बीच इंटरफेस के तौर पर काम किया जाता है। इसके अलावा टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के बीच भी जो इंस्ट्रक्शन होते हैं उन्हें संभालने का काम करता है। टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम का कमाल यह है कि इसकी वजह से यूजर एक ही समय में अलग-अलग कामों को कर सकता है। इसकी परमिशन टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा दी जाती है।

इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा यूजर को हर काम को करने के लिए एक समान समय प्रदान किया जाता है। टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम को मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम भी कहा जाता है, क्योंकि एक ही समय में इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में अलग-अलग कामों को किया जा सकता है।

जैसे कि अगर आप अपने कंप्यूटर पर अगर गाना सुन रहे तो उसी दरमियान आप अपने कंप्यूटर में किसी वर्ड फाइल को, पीडीएफ फाइल को ओपन कर सकते हैं या फिर किसी भी प्रकार के दस्तावेज की टाइपिंग करना भी स्टार्ट कर सकते हैं। अथवा किसी फाईल को दूसरे कंप्यूटर में या फिर दूसरे डिवाइस में शेयर कर सकते हैं। यूनिक्स, मॉलटिक्स, लिनक्स, विंडोज 2000 सर्वर, विंडोज एनटी सर्वर इत्यादि टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रमुख उदाहरण हैं।

रीयल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम

रियल टाइम डाटा के साथ जब यूजर काम कर रहा होता है तब अनिवार्य रूप से रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ काम किया जाता है। ऐसा करना इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि जब कोई डाटा आता है तो बिना किसी देरी के उस पर प्रोसेसिंग करना जरूरी होता है ताकि डाटा बफरिंग में अधिक देर ना लगे।

जब कभी भी आपको यह लगे कि आपके पास काफी अधिक रिक्वेस्ट आ चुकी है परंतु आपके पास उन रिक्वेस्ट पर प्रोसेस करने के लिए कम समय है तो ऐसी अवस्था में आपको रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करना चाहिए।

रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम के भी 3 प्रकार उपलब्ध है जिनमें से एक है हार्ड रियल टाइम और दूसरा है सॉफ्ट रियल टाइम तथा तीसरा है फर्म रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम।

1. HARD REAL-TIME

हार्ड रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम में जितने भी महत्वपूर्ण कामों को दिया जाता है उसे तय समय के अंदर ही कंप्लीट कर लिया जाता है हालांकि अगर कभी ऐसा होता है कि दिया गया काम तय समय में कंप्लीट नहीं होता है तो काफी नुकसान हो सकता है क्योंकि इसमें डिवाइस डैमेजिंग जिसे नुकसान भी शामिल है और इंसान की जान को भी नुकसान हो सकता है

उदाहरण के लिए जैसे कि वर्तमान के समय में अधिकतर कार में एयरबैग अवश्य होते हैं, जो एक्सीडेंट होने की अवस्था में अपने आप खुल जाते हैं परंतु मान लीजिए कि किसी ड्राइवर के द्वारा कार चलाई जा रही है और अचानक से ही उसकी कार किसी दूसरे गाड़ी से टकराने वाली है।

ऐसे में कार में लगा हुआ एयर बैग अपने आप ही ओपन हो जाता है और ड्राइवर के सर के सामने आ जाता है, ताकि एक्सीडेंट होने की अवस्था में ड्राइवर को चोट ना लगे, परंतु अगर एयरबैग समय पर नहीं ओपन होता है तो ऐसी अवस्था में एक्सीडेंट होने पर ड्राइवर को भी अत्यधिक चोट लग सकती है और कार को भी भारी नुकसान हो सकता है।

2: Soft-real Time Operating System

इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में थोड़े समय की देरी को स्वीकार कर लिया जाता है इसमें किसी भी प्रोसेस को होने में थोड़ा समय लगता है सॉफ्ट रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम में भी काम को पूरा करने के लिए एक समय निर्धारित होता है परंतु अगर कभी काम में देरी भी हो जाती है तो भी दिक्कत की बात नहीं होती है क्योंकि यहां पर देरी को स्वीकार कर लिया जाता है

उदाहरण के तौर पर एटीएम मशीन से जब कभी भी आप पैसा निकालते हैं, तो कभी-कभी तुरंत ही आपका पैसा निकल जाता है, तो कभी कभी पैसा मशीन से बाहर आने में थोड़ा समय लग जाता है।

इसके अलावा सॉफ्ट रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम में अगर किसी टास्क पर काम किया जा रहा है और उसी समय कोई दूसरा नया टास्क आ जाता है तो ऐसी अवस्था में जो नया टास्क आया है, उसे प्राथमिकता दी जाएगी और उस पर प्राथमिकता से काम किया जाएगा।

3: Firm Real-time Operating System

इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में भी वर्क को अंजाम देने की एक समय सीमा तय की गई होती है, परंतु अगर काम को निश्चित समय में पूरा नहीं किया जाता है तो भी ज्यादा नुकसान यहां पर नहीं होता है। विभिन्न मल्टीमीडिया एप्लीकेशन में फर्म REAL-TIME ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल होता है।

एंबेडेड ऑपरेटिंग सिस्टम

यह एक डेडीकेटेड कंप्यूटर सिस्टम होता है, जिसका निर्माण सिर्फ किसी स्पेशल कामों को अंजाम देने के लिए किया गया है। ऐसे सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर का कॉन्बिनेशन अर्थात संयोजन माना जाता है और जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत हो रहा है कि इसका मतलब होता है कोई एक चीज किसी दूसरी चीज से जुड़ी हुई होना।

तो इस प्रकार से हमारे द्वारा यह कहा जा सकता है कि एंबेडेड सिस्टम कंप्यूटर का ही एक हार्डवेयर सिस्टम है, जिसके साथ सॉफ्टवेयर जुड़ा हुआ होता है, क्योंकि एंबेडेड सिस्टम के पास हार्डवेयर भी होता है, सॉफ्टवेयर भी होता है और रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम भी होता है, जिसके द्वारा एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर की देखरेख की जाती है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के काम?

आर्टिकल में हमने कई बार इस बात का जिक्र किया हुआ है कि जब कभी भी कंप्यूटर को पावर ऑन किया जाता है अथवा लैपटॉप या फिर डेस्कटॉप अथवा मोबाइल को ही पावर ऑन किया जाता है तब उसमें सबसे पहले जो सिस्टम लोड होता है वह ऑपरेटिंग सिस्टम ही होता है।

इसके बाद आगे की कार्रवाई प्रारंभ होती है। एक ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर में इंस्टॉल होकर के कंप्यूटर के पावर ऑन होने के बाद लोड होता है और उसके बाद अनेक प्रकार के कामों को अंजाम देता है अर्थात सर्विस देता है, जो कि निम्नानुसार है।

सिक्योरिटी मैनेजमेंट

कंप्यूटर में जितने भी डाटा और प्रोग्राम अवेलेबल होते हैं, उन सब को ऑपरेटिंग सिस्टम के अंतर्गत सिक्योरिटी मैनेजमेंट इस प्रकार से अलग-अलग रखता है ताकि वह एक दूसरे के साथ मिक्स ना हो जाए।

इसके साथ ही साथ ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा यूजर की सिक्योरिटी का भी पूरा पूरा ध्यान रखा जाता है ताकि कोई भी अन्य व्यक्ति आपके महत्वपूर्ण डांटा को खत्म ना कर सके। इस प्रकार से ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा आपके कंप्यूटर की सिक्योरिटी के मैनेजमेंट के कामों को भी देखा जाता है।

टाइम शेयरिंग

असेंबलर, कंपाइलर और यूटिलिटी प्रोग्राम के साथ-साथ दूसरे सॉफ्टवेयर पैकेज को कंप्यूटर पर वर्क करने वाले अलग-अलग यूजर के लिए आसान करने का काम ऑपरेटिंग सिस्टम करता है।

 इसका मतलब यह होता है कि एक प्रकार से ऑपरेटिंग सिस्टम टाइम शेयरिंग के जरिए कंप्यूटर चलाने वाले व्यक्ति और कंप्यूटर सिस्टम के बीच बातचीत को सरल बनाता है।

डिवाइस मैनेजमेंट

ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा आउटपुट मैनेजमेंट और इनपुट मैनेजमेंट से संबंधित कामों को भी किया जाता है और कंप्यूटर से कनेक्टेड अलग-अलग इनपुट डिवाइस तथा अलग-अलग आउटपुट डिवाइस को आपस में कोऑर्डिनेट करने का काम भी ऑपरेटिंग सिस्टम ही करता है और ऑपरेटिंग सिस्टम ही इस बात का डिसीजन करता है कि कौन से डिवाइस को कौन सा काम देना है।

आपके द्वारा अथवा हमारे द्वारा जब एमएस वर्ड में कीबोर्ड में मौजूद कंट्रोल की बटन को दबाकर के प्रिंट कमांड दिया जाता है तो उसके पश्चात ऑपरेटिंग सिस्टम कीबोर्ड से इनपुट प्राप्त करता है और ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा प्रिंटर को आउटपुट कमांड प्रदान किया जाता है।

फ़ाइल मैनेजमेंट

फाइल प्रबंधन को फाइल मैनेजमेंट कहते हैं।

आपके द्वारा अपने कंप्यूटर में एमएस वर्ड अथवा एक्सल पावरप्वाइंट में जो फाइल बनाई जाती है उन्हीं के मैनेजमेंट अर्थात प्रबंधन के काम को ही फाइल मैनेजमेंट कहा जाता है, जिसका निर्माण यूजर के द्वारा किया जाता है।

आप कंप्यूटर में जो भी फाइल बनाते हैं, वह कंप्यूटर की उस मेमोरी में जाकर सुरक्षित होते हैं जिसे कंप्यूटर की सेकेंडरी मेमोरी कहा जाता है और सभी फाइल का कोई ना कोई नाम अवश्य होता है, ताकि आप इमरजेंसी की अवस्था में जब चाहे तब उस फाइल को उसके नाम से तुरंत ही सर्च कर सके।

कंप्यूटर में जितनी भी फाइल आप बनाते हैं, उन सभी फाइल की अपनी खुद की प्रॉपर्टी अवश्य होती है ताकि आप इस बात का पता लगा सके कि आपने जिस फाइल का निर्माण किया है वह किस प्रकार की है और वह फाइल कितने आकार की बनी हुई है तथा कंप्यूटर में कितना जगह ले रही है।

ऑपरेटिंग सिस्टम में आप फाइल मैनेजमेंट के अंतर्गत फाइल का निर्माण करते हैं और उसे मिटाते हैं अर्थात डिलीट करते हैं। इसके अलावा फोल्डर को भी बनाते हैं और डिलीट करते हैं, फाइल को निकाल सकते हैं या फिर फाइल का बैकअप भी ले सकते हैं।

यही नहीं ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा ही आप फाइल का पाथ सेट कर सकते हैं। पाथ का मतलब यह होता है कि आपके कंप्यूटर के कौन से हिस्से में फाइल जाकर के सुरक्षित होगी, वहां का एड्रेस फाइल ही पाथ कहलाता है।

मैमोरी मैनेजमेंट

मेमोरी प्रबंधन को मेमोरी मैनेजमेंट कहा जाता है। आप जब कंप्यूटर सिस्टम में किसी भी प्रकार के कामों को अंजाम देते हैं, तब उस काम की एडिटिंग करने में आपके लिए मेन मेमोरी बहुत ही सहायक साबित होती है।

कंप्यूटर के स्ट्रक्चर के अनुसार देखा जाए तो कंप्यूटर में मेमोरी ही वह भाग होता है, जो जब यूजर के द्वारा किसी भी प्रकार के डाटा को या फिर प्रोसेस को इनपुट किया जाता है तो उसे संग्रहित अर्थात स्टोर करने का काम करता है।

बता दें कि डाटा इनफार्मेशन और प्रोग्राम प्रोसेस के दरमियान मेमोरी में अवेलेबल होते हैं और जब जरूरत पड़ती है तो इमरजेंसी की अवस्था में भी उपलब्ध रहते हैं और सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट मेन मेमोरी से डायरेक्ट तौर पर डाटा प्राप्त करके उसे रीड या फिर राइट करने का काम करता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा लगातार इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वर्तमान में मेमोरी का वह कौन सा हिस्सा है जो किसी प्रोसेसिंग में इस्तेमाल हो रहा है। ऑपरेटिंग सिस्टम इस बात का भी डिसीजन लेता है कि जब मेमोरी में स्पेस उपलब्ध हो जाता है तब कौन सी प्रोसेस को लोड किया जाएगा।

प्रोसेसर मैनेजमेंट

आपके कंप्यूटर में जब कोई भी प्रोग्राम चालू होता है तो वह प्रोग्राम आपके कंप्यूटर के रिसॉर्स का इस्तेमाल करता है। इसके अंतर्गत प्रोग्राम के द्वारा कंप्यूटर के प्रोसेसर, रेंडम एक्सेस मेमोरी और हार्ड डिस्क का इस्तेमाल किया जाता है।

हालांकि यहां पर यह बात भी नोट करने वाली है कि प्रोग्राम सिर्फ तब ही आपके कंप्यूटर के रिसॉर्स का इस्तेमाल नहीं करता है जब प्रोग्राम काम करना चालू करता है।

अगर आपके द्वारा अपने कंप्यूटर में टास्क मैनेजर को बिना किसी प्रोग्राम को स्टार्ट किए हुए ओपन किया जाता है तो वहां पर आपको बहुत सारे प्रोग्राम पहले से ही चलते हुए दिखाई देते हैं परंतु यहां पर यह बात होती है कि कौन से प्रोग्राम को कितना प्रोसेसर दिया जाएगा और प्रोग्राम को कितने समय के लिए प्रोसेसर उपलब्ध करवाया जाएगा, इसका निर्णय लेने का काम ऑपरेटिंग सिस्टम करता है।

जब कंप्यूटर यूजर के द्वारा कंप्यूटर में किसी भी प्रकार के प्रोग्राम को चलाया जाता है तो ऑपरेटिंग सिस्टम ही उसे निश्चित मात्रा में और निश्चित समय के लिए प्रोफेसर उपलब्ध करवाता है और जैसे ही आपके द्वारा प्रोग्राम को बंद कर दिया जाता है वैसे ही तुरंत ऑपरेटिंग सिस्टम आपके प्रोसेसर को मुक्त कर देता है।

ऐसा करना ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं करता है तो आपके प्रोसेसर का पूरा 100 पर्सेंट इस्तेमाल होता है और इसकी वजह से आपका कंप्यूटर हैंग हो जाता है।

जॉब शेड्यूलिंग

जब हम अपने कंप्यूटर को पावर ऑन करते हैं, तो उसके बाद हम अपने कंप्यूटर में किसी भी काम को करना शुरू करते हैं और जैसे ही हमें कोई नया काम याद आता है वैसे ही हम उस काम को भी करना शुरू कर देते हैं।

ऐसे में हमारे कंप्यूटर में मौजूद ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा ही इस बात का डिसीजन लिया जाता है कि प्रोसेसर को किस प्रकार से शेड्यूल किया जाएगा और पहले प्रोसेसर को कौन से कामों को करने में लगाया जाएगा और काम जब खत्म हो जाता है तो उसके बाद उसे कौन सा काम दिया जाएगा। इस प्रकार से प्रोसेसर को काम देने की प्रक्रिया को ही जॉब शेड्यूलिंग अर्थात काम का शेड्यूल की प्रोसेस कहा जाता है।

टास्‍क मैनेजमेंट

टास्क मैनेजमेंट के अंतर्गत ऑपरेटिंग सिस्टम का यह काम भी होता है कि वह इस बात पर गौर करके रखे की कौन सी एप्लीकेशन बैकग्राउंड में काम कर रही है अर्थात चल रही है।

इसके अलावा टास्क मैनेजमेंट के अंतर्गत ऑपरेटिंग सिस्टम इस बात की भी निगरानी करता है कि कौन सी एप्लीकेशन को प्राथमिकता देनी है और किन एप्लीकेशन को बंद करवाना है।

ऑपरेटिंग सिस्टम की विशेषताएं?

ऑपरेटिंग सिस्टम की विशेषताएं निम्नानुसार है।

  • ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा ही कंप्यूटर के दूसरे प्रोग्रामों को चलाया जाता है।
  • जब कंप्यूटर को पावर ऑन किया जाता है तब उसमें सबसे पहले ऑपरेटिंग सिस्टम ही लोड होता है और उसके बाद आगे की प्रक्रिया चालू होती है।
  • ऑपरेटिंग सिस्टम ही वह चीज है जो कंप्यूटर के हार्डवेयर और कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर के बीच में कम्युनिकेशन स्थापित करता है।
  • मेमोरी, डिवाइस, फाइल, प्रोसेसर इत्यादि सभी चीजों को मैनेज करने का काम ऑपरेटिंग सिस्टम ही बखूबी करता है।
  • कंप्यूटर चलाने वाले व्यक्ति और कंप्यूटर प्रोग्राम के बीच आपसी सामंजस्य बिठाने का काम भी ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा ही अंजाम दिया जाता है।
  • वर्तमान के समय में जो ऑपरेटिंग सिस्टम मार्केट में आ रहे हैं, वह ग्राफिक यूजर इंटरफेस के सिद्धांत पर आधारित होते हैं। इसलिए इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करना एक सामान्य यूजर के लिए भी काफी आसान है।
  • क्योंकि जिस कंप्यूटर में ग्राफिक यूजर इंटरफेस के सिद्धांत पर काम करने वाले ऑपरेटिंग सिस्टम अवेलेबल होते हैं, उसमें काम करने के लिए यूजर को किसी भी प्रकार के विशेष कोडिंग की आवश्यकता बिल्कुल भी नहीं होती है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के फायदे?

ऑपरेटिंग सिस्टम के लाभ क्या है अथवा ऑपरेटिंग सिस्टम के एडवांटेज क्या है, आइए जानते हैं।

  • कुछ ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम मार्केट में अवेलेबल है जिनका इस्तेमाल करने के लिए हमें ₹1 भी देने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • वर्तमान के समय में अधिकतर कंप्यूटर, डेस्कटॉप में पहले से ही इनबिल्ट ऑपरेटिंग सिस्टम आते हैं।
  • ऑपरेटिंग सिस्टम को समय-समय पर अपडेट करने के लिए कहा जाता है। इसलिए जब हम ऑपरेटिंग सिस्टम को अपडेट करते हैं तब हमें अन्य सुविधाएं और विशेषताएं भी प्राप्त होती है।
  • ऑपरेटिंग सिस्टम को अपडेट करना काफी सरल प्रक्रिया होती है।
  • कंप्यूटर के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम 100% सुरक्षित होते हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा कंप्यूटर के सिस्टम के लिए खराब फाइल को पहचान लिया जाता है और उसे कंप्यूटर में से हटाया जाता है।
  • ऑपरेटिंग सिस्टम का यूजर इंटरफेस बहुत ही आसान और सुरक्षित होता है। इसलिए एक सामान्य यूजर के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करना काफी सरल हो जाता है।
  • हमें किसी भी प्रकार का डाटा अगर दूसरे यूजर के साथ शेयर करना है तो इसमें भी ऑपरेटिंग सिस्टम हमारे लिए सहायक साबित होता है।
  • अगर हमें अपने कंप्यूटर में अथवा लैपटॉप में किसी दूसरी एप्लीकेशन या फिर सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल करना है और उनका इस्तेमाल करना है तो इसके लिए भी ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जा सकता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के नुकसान?

ऑपरेटिंग सिस्टम के नुकसान निम्नानुसार है।

  • इंटरनेट से प्राप्त जानकारियों के अनुसार विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल अगर किसी कंप्यूटर में किया जाता है तो बता दे कि विंडोज अपडेट सिस्टम का प्राइस 100 से लेकर के $150 तक होता है। इसे अगर भारतीय रुपए में कन्वर्ट किया जाता है तो यह तकरीबन 10000 के आसपास में होता है।
  • लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम की तुलना में करना थोड़ा सा कठिन होता है।
  • कुछ ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम भी अवेलेबल है जो कभी-कभी किसी हार्डवेयर को सपोर्ट करने से मना कर देते हैं।

टॉप ऑपरेटिंग सिस्टम के नाम?

दुनिया भर में अनेकों ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है, जिनकी संख्या 800 से भी ज्यादा है परंतु उनमें से कुछ ही ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम है जो सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाते हैं, जिनकी सूची निम्नानुसार है।

  • WINDOWS OS
  • MAC OS
  • LINUX OS
  • UBUNTU
  • ANDROID OS
  • IOS
  • MS-DOS
  • SYMBIAN OS
  • TIZEN

ऑपरेटिंग सिस्टम की टाइमलाइन

ऑपरेटिंग सिस्टम की टाइम लाइन की जानकारी निम्नानुसार है।

पहली पीढ़ी

ऑपरेटिंग सिस्टम की पहली पीढ़ी की टाइमलाइन की शुरुआत साल 1940 से हुई थी और यह साल 1950 तक चली थी। साल 1940 में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर को प्रस्तुत किया गया था। हालांकि इन प्रकार के कंप्यूटर में ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल नहीं किया गया था।

अर्थात यह कंप्यूटर बिना ऑपरेटिंग सिस्टम के ही लांच किए गए थे। इसमें ऑपरेटिंग सिस्टम की जगह पर मशीन लैंग्वेज का इस्तेमाल किया गया था। इस पीढ़ी के कंप्यूटर का इस्तेमाल सामान्य तौर पर गणित से संबंधित कैलकुलेशन को सॉल्व करने के लिए किया जाता था और इसमें ऑपरेटिंग सिस्टम की कोई भी आवश्यकता नहीं थी।

दूसरी पीढ़ी

दूसरी पीढ़ी के कंप्यूटर की टाइमलाइन 1955 से लेकर के साल 1965 तक थी। इसके अंतर्गत साल 1950 में पहला ओएस प्रस्तुत किया गया था जिसका नाम जीएमओएस था। इसका निर्माण करने का काम जनरल मोटर के द्वारा किया गया था।

और जनरल मोटर्स ने इसे आईबीएम की 701 मशीन के लिए तैयार किया था। इस मशीन की कीमत काफी ज्यादा थी। इसीलिए सिर्फ गवर्नमेंट एजेंसी या फिर जो बड़े-बड़े निगम होते थे उन्ही के द्वारा इसका इस्तेमाल किया जाता था।

तीसरी पीढ़ी

तीसरी पीढ़ी के कंप्यूटर की टाइमलाइन साल 1965 से लेकर के साल 1980 तक की थी। साल 1960 का अंत होते-होते तक ऑपरेटिंग सिस्टम डिज़ाइनर मल्टीप्रोग्रामिंग के सिस्टम को डिवेलप करने में पूरी तरह से सक्षम हो गए थे।

इसके अंतर्गत एक ही समय में विभिन्न प्रकार के कामों को पूरा करने की कैपेसिटी कंप्यूटर प्रोग्राम को प्राप्त हो चुकी थी। कंप्यूटर की तीसरी पीढ़ी की टाइम लाइन में ही मिनी कंप्यूटर का भी विकास हुआ था और काफी तेजी से उसकी वजह से जल्दी से इसका विस्तार हुआ।

चौथी पीढ़ी

चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर को फोर्थ जनरेशन कंप्यूटर कहा जाता है‌‌। चौथी पीढ़ी के कंप्यूटर की जनरेशन की टाइम साल 1980 से लेकर के वर्तमान तक चल रही है। इसी पीढ़ी के दरमियान पर्सनल कंप्यूटर का निर्माण हुआ था जिसे संक्षेप में पीसी कहा जाता है। चौथी पीढ़ी के दरमियान जो कंप्यूटर बनाए गए थे वह काफी हद तक मिनी कंप्यूटर से मेल खाते थे।

परंतु मिनी कंप्यूटर की तुलना में जिस पर्सनल कंप्यूटर का निर्माण किया गया था, वह कीमत में मिनी कंप्यूटर से काफी कम ही है। पर्सनल कंप्यूटर की कीमत इतनी कम थी कि सामान्य व्यक्ति के लिए भी इसकी खरीदारी करना पॉसिबल हो गया था। बता दें कि इन्हीं पर्सनल कंप्यूटर की वजह से ही माइक्रोसॉफ्ट और विंडोज जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम पैदा हुए।

ऑपरेटिंग सिस्टम की कैटिगरी

ऑपरेटिंग सिस्टम की चार प्रकार की कैटेगरी अवेलेबल है, जिनके नाम और जानकारी निम्नानुसार है।

SINGLE USER OS

सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम होते हैं, जिसमें एक समय में यूजर सिर्फ कंप्यूटर पर एक ही काम को कर सकता है, क्योंकि ऐसा करने की परमिशन सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा दी जाती है।

जैसे कि एमएस डॉस एक सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम था क्योंकि इस पर आपको एक समय में एक ही काम को करने की परमिशन प्राप्त होती थी। अगर आप इस ऑपरेटिंग सिस्टम पर किसी दूसरे काम को पहले से ही चल रहे काम की जगह पर करने का प्रयास करते तो ऐसा पॉसिबल ही नहीं होता, क्योंकि सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम का फंक्शन इसे अलाऊ ही नहीं करता।

Multi-user Os

मल्टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम होते हैं जिस पर एक कंप्यूटर पर यूजर अगर किसी एक काम को कर रहा है और उसी दरमियान उसे किसी अन्य काम को भी करना है तो वह दूसरे काम को भी पहले से ही चल रहे काम के साथ-साथ कर सकता है।

इसलिए तो इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम को मल्टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम कहा जाता है। लिनक्स, यूनिक और विंडोज सर्वर इत्यादि मल्टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रमुख उदाहरण है।

Single Tasking Os

यह ऐसे ऑपरेटिंग सिस्टम होते हैं, जिनके द्वारा एक समय पर सिर्फ एक ही काम को पूरा किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर अगर आप एमएस डॉस ऑपरेटिंग सिस्टम में शब्दों को टाइप करने का काम कर रहे हैं।

तो उसी दरमियान आप ना तो दूसरी किसी फाइल को ओपन कर सकते हैं ना ही मल्टीटास्किंग को अंजाम दे सकते हैं। आप जब शब्द टाइपिंग करने का काम खत्म कर लेते हैं तो उस विंडो को क्लोज कर के ही दूसरा कोई काम चालू कर सकते हैं।

Multitasking Os

एक समय में एक से अधिक कामों को करने की पूरी छूट मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा दी जाती है। वर्तमान के समय में अधिकतर ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा मल्टीटास्क को सपोर्ट किया जाता है।

इसे अगर हम उदाहरण के सहित समझाए तो मान लिजिए आप कंप्यूटर पर इंटरनेट चला रहे हैं और उसके साथ ही साथ आप गाने भी सुन रहे हैं और इसके साथ ही साथ आप किसी नोटपैड में शब्दों को भी टाइप कर रहे हैं या फिर ईमेल सेंड कर रहे तो यह सभी मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा ही संभव हो पाता है।

मल्टीटास्किंग का मतलब होता है एक ही समय पर अलग अलग कामों को करना। विंडोज, लिनक्स, यूनिक्स, मैकओएस, एंड्राइड, आईओएस इत्यादि मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रबल उदाहरण है।

तो दोस्तों आशा करते हैं की अब आपको ऑपरेटिंग सिस्टम से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारी मिल चुकी होगी, और आप जान गये होगे की ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है?

FAQ:

ऑपरेटिंग सिस्टम की परिभाषा क्या है?

ऑपरेटिंग सिस्टम को हिंदी में प्रचालन तंत्र कहते हैं।

ऑपरेटिंग सिस्टम का उदाहरण कौन सा है?

LINUX, WINDOWS, ANDROID, IOS

ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य क्या है?

रिसोर्स मैनेजमेंट , प्रोसेस मैनेजमेंट, डाटा मैनेजमेंट, सिक्योरिटी मैनेजमेंट

ऑपरेटिंग सिस्टम कितने प्रकार के होते हैं?

इसकी विस्तृत जानकारी आर्टिकल में दी गई है।

आज के हमारे इस आर्टिकल में हमने आपको ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है? के बारे में बताया है, यदि आपने हमारा यह आर्टिकल अच्छी तरह से पढ़ लिया है तो अब आपको ऑपरेटिंग सिस्टम के बारे में पूरा ज्ञान प्राप्त हो चुका है, हमें उम्मीद है कि आप हमारा आर्टिकल पसंद आया होगा।

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1 COMMENT

  1. मैं एक हिंदीभाषी हूँ मुझे हमेशा से ही कंप्यूटर कॉन्सेप्ट्स में कठिनाई होती है लेकिन इस जानकारी को आसानी से समझ गया हूँ / धन्यवाद

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